For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

परवरिश - लघुकथा –

परवरिश - लघुकथा –

आज फिर शुभम और सुधा में गर्मागर्म बहस हो रही थी। मुद्दा वही था कि बाबूजी के कारण बिट्टू उदंड और जिद्दी होता जा रहा है।

"सुधा,  बिट्टू उनकी संगत में जिद्दी नहीं तार्किक और जिज्ञासु हो गया है। हम इस विषय में कितनी बार बात कर चुके हैं कि अस्सी साल की  उम्र में मैं अपने पिता को अलग नहीं रख सकता।"

"तो मैं बिट्टू के साथ कहीं और चली जाती हूँ। इतना तो कमा ही लेती हूँ कि दोनों का गुजारा हो सके।"

"सुधा तुम्हें पता है, मेरी माँ की मृत्यु के समय मैं केवल पाँच साल का था।पिताजी चाहते तो दूसरी शादी कर लेते।लेकिन उन्होंने मेरी परवरिश को महत्व दिया।ऐसे व्यक्ति की परिवार के प्रति निष्ठा पर तुम कैसे शक़ कर सकती हो।पिता के ऐसे त्याग  को मैं कैसे अनदेखा कर दूँ?"

"मैं भी मेरे बेटे का भविष्य चौपट होते नहीं देख सकती।"

"सुधा, यह तुम्हारा वहम है| अभी हम दोनों  जॉब करते हैं।बिट्टू स्कूल से एक बजे आता है।उसे स्कूल से लाने, लेजाने और बाद में सारे दिन संभालने की जिम्मेवारी भी तो पिताजी ही निभाते हैं।"

"उसके लिये तो एक बाई है मेरी नज़र में।"

"सुधा, मुझे तो तरस आता है तुम्हारी सोच पर।अपने खून पर भरोसा नहीं है।बाहर की काम वाली बाई पर है।जो सारे दिन ए सी में पड़ी पड़ी टी व्ही देखा करेगी।"

"मुझे कुछ नहीं सुनना। आज फ़ैसला होकर रहेगा। नहीं तो मैं आज ही बिट्टू को लेकर माँ के पास चली जाऊँगी।"

गुस्से में भनभनाती हुई सुधा बेड रूम का द्वार खोल कर जैसे ही बाहर निकली। सुधा की आँखें फटी की फटी रह गयीं जब उसने बिट्टू और बाबूजी को बेडरूम के दरवाजे से चिपके देखा। उसका पारा अब तो सातवें आसमान  पर था।

"शुभम, लो अपनी आँखों से देखलो अपने बाबूजी की करतूत। खुद तो चोरी छिपे हमारे बेडरूम में झाँकते ही हैं, साथ में बिट्टू को भी ले रखा है।"

शुभम बाहर आया तो उसे भी अपनी आँखों पर विश्वास नहीं हुआ। वह प्रश्नवाचक नज़रों से पिताजी को घूर रहा था।

पिता की आँखों से उत्तर की जगह आँसू टपक रहे थे।

इस असमंजस की स्थिति को बिट्टू ने तोड़ा,"पापा, दादाजी यहाँ अपने आप नहीं आये। मैं उन्हें लाया था। मैं उन्हें दिखाना चाहता था कि उनकी उनके ही घर में कितनी इज्जत है।

"शुभम ने एक संतोष की साँस ली और फिर बिट्टू के सिर को सहला कर उसे जता दिया कि उसकी परवरिश सही हाथों में हो रही है।

मौलिक एवम अप्रकाशित

Views: 686

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by TEJ VEER SINGH on October 4, 2018 at 5:25pm

हार्दिक आभार आदरणीय नीलम जी।

Comment by TEJ VEER SINGH on October 4, 2018 at 5:24pm

हार्दिक आभार आदरणीय समर क़बीर साहब जी।

Comment by TEJ VEER SINGH on October 4, 2018 at 5:23pm

हार्दिक आभार आदरणीय  सुरेन्द्र नाथ सिंह 'कुशक्षत्रप जी।

Comment by Neelam Upadhyaya on October 4, 2018 at 4:39pm

 संयुक्त परिवार का चलन तो अब रहा नहीं।  रही सही कसर परिवारों में  बुजुर्गो का मान-सम्मान भी काम होता जा रहा है। संकीर्ण सोच को उजागर करती सूंदर रचना के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीय तेजवीर सिंह जी। 

Comment by Samar kabeer on October 2, 2018 at 12:07pm

जनाब तेजवीर सिंह जी आदाब,अच्छी लघुकथा हुई है,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

Comment by नाथ सोनांचली on September 30, 2018 at 9:32am

आद0 तेजवीर सिंह जी सादर अभिवादन। आज के समय को और परिवारिक उलझनों तथा बुजुर्गों के दशा पर युवाओं के द्वंद को बहुत बढ़िया ढंग से आपने लघुकथा में उकेरा है। बहुत बहुत बधाई स्वीकार कीजिये

Comment by TEJ VEER SINGH on September 29, 2018 at 3:05pm

हार्दिक आभार आदरणीय babitagupta जी।

Comment by babitagupta on September 29, 2018 at 12:55pm

वर्तमान में अधिकांशतया परिवारों में  बुजुर्गो को लेकर इतनी छोटी सोच को उजागर करती रचना ,बेहतरीन रचना बधाई आदरणीय तेजवीर सरजी। 

Comment by TEJ VEER SINGH on September 28, 2018 at 4:45pm

हार्दिक आभार आदरणीय श्याम नारायण जी। प्रणाम।

Comment by Shyam Narain Verma on September 28, 2018 at 12:29pm

आदरणीय प्रणाम , उम्दा लघुकथा हुई है,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें । | सादर

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"धन्यवाद आ. लक्ष्मण जी "
3 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"धन्यवाद आ. लक्ष्मण जी "
3 hours ago
Chetan Prakash commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post घाव भले भर पीर न कोई मरने दे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"खूबसूरत ग़ज़ल हुई, बह्र भी दी जानी चाहिए थी। ' बेदम' काफ़िया , शे'र ( 6 ) और  (…"
14 hours ago
Chetan Prakash commented on PHOOL SINGH's blog post यथार्थवाद और जीवन
"अध्ययन करने के पश्चात स्पष्ट दृष्टिगोचर होता है, उद्देश्य को प्राप्त कर ने में यद्यपि लेखक सफल…"
14 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on PHOOL SINGH's blog post यथार्थवाद और जीवन
"सुविचारित सुंदर आलेख "
Saturday

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post घाव भले भर पीर न कोई मरने दे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"बहुत सुंदर ग़ज़ल ... सभी अशआर अच्छे हैं और रदीफ़ भी बेहद सुंदर  बधाई सृजन पर "
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (अलग-अलग अब छत्ते हैं)
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। परिवर्तन के बाद गजल निखर गयी है हार्दिक बधाई।"
Thursday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। सार्थक टिप्पणियों से भी बहुत कुछ जानने सीखने को…"
Thursday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा
"आ. भाई बृजेश जी, सादर अभिवादन। गीत का प्रयास अच्छा हुआ है। पर भाई रवि जी की बातों से सहमत हूँ।…"
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

घाव भले भर पीर न कोई मरने दे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

अच्छा लगता है गम को तन्हाई मेंमिलना आकर तू हमको तन्हाई में।१।*दीप तले क्यों बैठ गया साथी आकर क्या…See More
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहते हो बात रोज ही आँखें तरेर कर-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और स्नेह के लिए आभार। यह रदीफ कई महीनो से दिमाग…"
Tuesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service