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आदरणीया वृष्टि जी बहुत बेहतरीन अतुकांत दिल खुश होगया बधाई कुबूल कीजिए
मुहतरमा "वृष्टि" जी आदाब,बहुत सुंदर अतुकान्त कविता लिखी आपने,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
इस मंच पर महीने में चार आयोजन होते हैं,जिसके बारे में मुख्य पृष्ठ से जानकारी मिल जायेगी,एक आयोजन तो आज रात 12 बजे से चालू होगा,आप उसमें भी हिस्सा लें तो अच्छा लगेगा ।
हाँ देखा है मैंने!
कविता को-
टूटते-संवरते,
गिरते-संभलते,
बनते-बिगड़ते !!
आदारणीया वी ऍम वृष्टि जी अत्यंत सुंदर अतुकांत रचना है । आपको हार्दिक बधाई । शब्द हुवे को हुए और संभलते सँभलते लिखना मेरे विचार से ठीक होगा ।
सादर ।
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