बाज
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चिड़िया ने पंख फड़फड़ाये।उड़ने को उद्यत हुई।उड़ी भी,पर पंख लड़खड़ा गये।उसे सहसा एक झोंका महसूस हुआ।।वह गिरते-गिरते बची,उसमें कुछ दूर उड़ती गयी।वह एक बड़ा पंख था,जो उसे हवा दे रहा था।वह उड़ती जा रही थी।कभी-कभी उसे उस बड़े पंख का दबाव सताता।वह कसमसाती,पर और ऊपर तक उड़ने की ख्वाहिश और जमीन पर गिरने के भय में टंगी वह घुटी भी,उड़ी भी......उड़ती रही।ऊँची शीतल हवाओं का सिहरन भरा स्पर्श उसे आंनदित करता।वह उस कंटकित पंख की चुभन जनित अपने सारे दुःख-दैन्य भूलकर उड़ती रही,तबतक जबतक उसे एक ऊँचाई न मिल गई;वह जमीन पर गिरने के भय से मुक्त न हो गई।उसने इधर-उधर निहारा।दुनिया उसे देख रही थी।लोगों की आँखों में उसे अपना विवस्र कद दिखा।वह चिल्लाई
-बाज़,बाज़
-क्या हुआ?' बगल की खग-मंडली से आवाज आई।
-मैं बाज के पंजे में हूँ।
-कब से?
-अरसा हुआ।जब मैं उड़ते-उड़ते लड़खड़ाई थी,तब एक पंख की हवा ने संभाला था।अब उसकी छुवन चुभती है।
-और तब?
-तब मैं नादान थी।खूब ऊँचा उड़ने की चाह थी।
-और अब ऊँचाई मिल गई है।यही न?' एक चिड़िया ने चुटकी ली।
फिर चिड़ी-दल में कानाफूसी शुरू हो गई।फिर जैसे निर्णय हो गया।
-हाँ मेरे साथ भी ऐसा हुआ था,'एक अन्य चिड़ी बोली।
-मैं भी प्रताड़ित हुई हूँ', दूसरी आवाज आई
फिर वातावरण में 'हाँ मैं भी.....मैं भी',की ध्वनि गूँजने लगी।और गौरैया अविचलित भाव से उड़ चली,यह कहते हुए कि ----अपुन के पंख काफी हैं,अपने लिए।'
"मौलिक व अप्रकाशित"
Comment
आदरणीय विजय शंकर जी! रचना ने आपका ध्यान आकृष्ट किया,इसके लिए दिली आभार व्यक्त करता हूँ।हाँ,बुराई तो बुराई ही होती है,चाहे जिस किसी की तरफ से आरोपित हो।पर इतना जरूर कहना लाजिमी होगा कि बुराई का,खासकर विषय जनित बुराई का तो तत्काल ही प्रतिकार होना चाहिए।प्रतिकार करने के लिए किसी का ग्रीन कार्ड धारक होना लाजिमी नहीं हैं।
बहुत बहुत आभार आदरणीया नीताजी।
आदरणीय मनन कुमार सिंह जी, सांकेतिक रूप में एक सामयिक विषय पर अच्छी एवं सारगर्भित प्रस्तुति। आपका संकेत सही है। सच तो यह है कि प्रायः सामाजिक बुराइयों को जानते भी हैं और सहते भी रहते हैं , और वह भी चुपचाप। कहीं कोई आगे बढ़ कर साहस दिखाता है तो बहुत से लोग उसमें ‘ मैं भी , मैं भी ‘ कहते हुए शामली हो जाते हैं। पर इतने मात्र से सामाजिक बुराइयां दूर होती नहीं हैं। शायद उन्हें दूर करने के लिए और अधिक सशक्त आवाज और विरोध की आवश्यकता होती है।
आपको इस प्रस्तुति के लिए बधाई, सादर।
आज की ज्वलंत समस्या पर प्रकाश डाला है जो सोशल मीडिया और अख़बारों में प्रमुखता से सामने आई है ।बधाईआपको कथा के लिये आद० मनन कुमार सिंह जी ।
आभार
वाह वाह वाह वाह बहुत बढ़िया।शानदार ।बहुत बहुत दिली बधाई आपको इस रचना के लिए।
आपका शुक्रिया आदरणीया नीलम जी।
आपका बहुत बहुत आभार आदरणीय सुरेंद्र जी।
आदरणीय मनन कुमार जी, सम-सामयिक विषय पर बहुत ही बढ़िया लघुकथा। इशारों - इशारों में ही आज के ज्वलंत विषय को उठा कर उसकी राह को मुकर्रर कर दिया। हार्दिक बधाई।
आद0 मनन कुमार सिंह जी सादर अभिवादन। सत्य यहीं है कि जब उनको ऊँचाई चाहिए था तो वे सब कुछ सहन करने को तैयार थी पर जब ऊँचाई मिल गयी तो..... बहुत बढ़िया और अभी सोशल मीडिया पर चल रहे अभियान पर भी कटाक्ष करती बेहतरीन लघुकथा पर आपको बधाई।
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