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गजल(डरे जो बहुत....)

122 122  122  12
डरे जो बहुत,बुदबुदाने लगे
मसीहे,लगा है, ठिकाने लगे।1

तबाही का' आलम बढ़ा जा रहा
चिड़ी के भी' पर फड़फड़ाने लगे।2

नचाते रहे जो हसीं को बहुत
सलीके से' नजरें चुराने लगे।3

नहीं कुछ किया,कहते' आँखें भरीं
गये वक्त अब याद आने लगे।4

उड़ाते न तो कोई' उड़ता कहाँ?
यही कह सभी अब चिढ़ाने लगे।5
"मौलिक वअप्रकाशित"

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Comment by Manan Kumar singh on October 17, 2018 at 6:08pm

आभारी हूँ आदरणीय समर साहिब,नमन।आइंदा अवश्यमेव ध्यान में रहेगा।

Comment by Samar kabeer on October 17, 2018 at 5:11pm

जनाब मनन कुमार सिंह जी आदाब,अच्छी ग़ज़ल हुई है,बधाई स्वीकार करें ।

मंच की दूसरी रचनाएँ भी आपकी बहुमूल्य टिप्पणी की प्रतीक्षा में रहती हैं ।

Comment by Manan Kumar singh on October 16, 2018 at 2:01pm

आभार आपका आ.नरेंद्र जी।

Comment by Manan Kumar singh on October 16, 2018 at 2:00pm

आभार आदरणीय लक्ष्मण जी।

Comment by narendrasinh chauhan on October 16, 2018 at 1:48pm

खूब सुन्दर रचना 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on October 16, 2018 at 1:05pm

आ. भाई मनन जी, सुंदर गजल हुयी है । हार्दिक बधाई ।

कृपया ध्यान दे...

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