122 122 122 12
डरे जो बहुत,बुदबुदाने लगे
मसीहे,लगा है, ठिकाने लगे।1
तबाही का' आलम बढ़ा जा रहा
चिड़ी के भी' पर फड़फड़ाने लगे।2
नचाते रहे जो हसीं को बहुत
सलीके से' नजरें चुराने लगे।3
नहीं कुछ किया,कहते' आँखें भरीं
गये वक्त अब याद आने लगे।4
उड़ाते न तो कोई' उड़ता कहाँ?
यही कह सभी अब चिढ़ाने लगे।5
"मौलिक वअप्रकाशित"
Comment
आभारी हूँ आदरणीय समर साहिब,नमन।आइंदा अवश्यमेव ध्यान में रहेगा।
जनाब मनन कुमार सिंह जी आदाब,अच्छी ग़ज़ल हुई है,बधाई स्वीकार करें ।
मंच की दूसरी रचनाएँ भी आपकी बहुमूल्य टिप्पणी की प्रतीक्षा में रहती हैं ।
आभार आपका आ.नरेंद्र जी।
आभार आदरणीय लक्ष्मण जी।
खूब सुन्दर रचना
आ. भाई मनन जी, सुंदर गजल हुयी है । हार्दिक बधाई ।
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