'परखना, पहचानना, ताड़ना या प्रतारणा या उद्धार करना' ... इन विभिन्न अर्थों में संत तुलसीदास जी की चौपाई ”ढोल, गंवार, शूद्र, पशु, नारी। सकल ताड़ना के अधिकारी।।“ में आये 'ताड़न' शब्द पर इंटरनेट-ज्ञान बघारते हुए कुछ पुरुषों में चर्चा क्या हुई, कि उनके बीच नई सदी के रंग-ढंग पर उस पंक्ति पर तुकबंदी और पैरोडी सी शुरू हो गई! .. फिर मज़ाक ने बहस का रूप ले लिया।
"भई अब तो महिला-पुरुष समानता और महिला सशक्तिकरण की बातें हो रही हैं अपने वतन में भी! योजनाएं और क़ानून बन रहे हैं लड़कियों और महिलाओं के हक़ में!"
"हां, अब तो तुलसीदास जी की चौपाई में उलटफेर कर दो! पुरुषों वाली सोच और लक्षण लड़कियों और औरतों में विकसित हो चुके हैं!"
मौजूद मित्र-मंडली में से बारी-बारी से पुरुष बोलते जा रहे थे।
"घर-बाहर, दुकान-दफ़्तर हर जगह लड़कियों और औरतों का ही बोलबाला है! अब तो लड़के और मर्द ही नहीं, लड़कियें और औरतें.. यहां तक की पालतू पशु तक भी उनके द्वारा परखे जाते हैं, शोषित और प्रताड़ित किए जाते हैं, भाई!" एक मर्द ने कहा।
"तुम तो पॉश-कॉलोनियों की किटी-पार्टियों वाली रईस सफ़ेदपोश या नक़ाबपोश अप्सराओं की बात करने लगे अब! अरे, वे तो लड़कों, मर्दों को ही नहीं, बल्कि अपने चंगुल में फंसाकर नाबालिग लड़कियों तक को ताड़ती और प्रताड़ित करती पायी गई हैं पैसे फैंक कर!"
"बिल्कुल सही फ़रमाया गुरू! चमकती-दमकती अप्सराओं के असली चेहरों के पीछे व्याभिचार और समलैंगिकता पुरुषों से टक्कर ले रही है!"
"अरे, ऐसा वे ही करतीं हैं जो अपनी नाबालिग उम्र में या शादी के पहले ऐसी प्रताड़नाओं से गुजर चुकी होती हैं!"
सबके अपने-अपने तर्क थे। कोई कहीं का कोई कड़वा सच बयां कर रहा था, तो कोई सर्वेक्षणों की पढ़ी-सुनी बातें कहकर अपनी भड़ास निकाल रहा था। तभी उनमें से एक ने अपना मौन तोड़ते हुए कहा - "भई, अपवाद हो सकते हैं, हमारे देश में! लेकिन विदेशों जैसे हालात भी नहीं हैं! हां, महानगरों में और धनाढ्यों में महिलाओं द्वारा महिला-शोषण, ताड़न-प्रताड़न तो बढ़ रहा है!"
"तो हो रहा है न तुलसीदास जी की चौपाई में भी फेरबदल वाला बयान-बदलाव! 'ढोल, अनपढ़, मुफ़लिस-ग़रीब, बेरोज़गार, पति, कर्मचारी , पालतू... सब नारी से ताड़ना-प्रताड़ना के अधिकारी'..!"
(मौलिक व अप्रकाशित)
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मेरी इस रचना पर भी अपना अमूल्य समय देकर अपनी राय से अवगत कराने, अनुमोदन और मुझे प्रोत्साहन हेतु हार्दिक धन्यवाद आदरणीय तेजवीर सिंह साहिब, आदरणीय समर कबीर साहिब और आदरणीय सुरेन्द्र नाथ सिंह 'कुशक्षत्रप' साहिब।
आद0 शेख शहज़ाद उस्मानी साहब सादर अभिवादन। बढ़िया लघुकथा लिखी आपने। बधाई संप्रेषित है।
जनाब शैख़ शहज़ाद उस्मानी जी आदाब,अच्छी लघुकथा हुई है,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वेरकार करें ।
हार्दिक बधाई आदरणीय शेख उस्मानी जी। बेहतरीन लघुकथा।बहुत भेद भरी और अर्थ पूर्ण बात कह दी इसके माध्यम से।
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