२२१/ २१२१/ १२२१/ २१२
वाजिब हुआ करे था जो तकरार मर गया
आजाद जिन्दगी में भी इन्कार मर गया।१।
दोनों तरफ है कत्ल का सामान बा-अदब
इस पार बच गया था जो उस पार मर गया।२।
जीने लगे हैं लोग यहाँ खुल के नफरतें
साँसों की जो महक था वही प्यार मर गया।३।
सौदा वतन का रोज ही शासक यहाँ करें
सैनिक ही नाम देश के बेकार मर गया।४।
जो हक बयाँ का दोस्तो औजार था कभी
आमद की लालसा में वो अख़बार मर गया।५।
वैसे नहीं था यार तनिक बोझ उसको पर
बाकी दिनों की दौड़ में इतवार मर गया।६।
जिसमें बसे हैं भेड़िये आदम के रूप में
खुश है वो गाँव आज कि गुलदार मर गया।७।
दे दी है बेबसी जो सियासत ने यार इक
मुंसिफ का सिर्फ नाम है अधिकार मर गया।८।
बरसों से ठग रहा था मैं खुद को मुखौटे से
अच्छा हुआ कि आज वो किरदार मर गया।९।
देते हैं पहले जोर वो कहकर नियम नियम
कहते गजल का बाद में क्यों सार मर गया।१०।
मौलिक-अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
Comment
आ. भाई बृजेश जी, सादर आभार ।
आ. भाई समर जी, समझाइस के लिए आभार ।
आ. भाई विजय जी, सादर आभार ।
बढ़िया बहुत ही बढ़िया ग़ज़ल कही है आदरणीय...
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आमद की लालसा में वो अख़बार मर गया'
इस मिसरे में 'आमद' का अर्थ हर हाल में धन कमाने के संदर्भ में लिया है ।//
"आमद" फ़ारसी का शब्द है,और इसका अर्थ है 'आना',मिसरा यूँ कर सकते हैं:-
'पैसों की लालसा में वो अख़बार मर गया'
आपकी गज़ल अच्छी लगी। हार्दिक बधाई, मित्र लक्ष्मण जी।
आ. भाई समर जी सादर अभिवादन।गजल पर उपस्थिति, स्नेह और मार्गदर्शन के लिए हार्दिक धन्यवाद।
'
आमद की लालसा में वो अख़बार मर गया'
इस मिसरे में 'आमद' का अर्थ हर हाल में धन कमाने के संदर्भ में लिया है । अंतिम शेर में खुद पर ही तंज किया है । कई बार शब्द ज्ञान की अल्पता के कारण बहर बाँधने के लिए उपयुक्त सार्थक शब्द नहीं मिल पाता और बात सही ठंग से कह नहीं पाता तो ऐसा ही प्रतीत होता है कि नियमों के चक्कर में कहन स्पष्ट नहीं हो पाया । इसी संदर्भ में इसे लिखा है ।
शेष कमियों को सुधारने का प्रयास करता हूँ। सादर....
आ. भाई बसंत जी, स्नेह के लिए आभार ।
आ. भाई राजनवादवी जी, गजल पर उपस्थिति और प्रशंसा के लिए आभार।
आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन । स्नेह व मार्गदर्शन के लिए आभार।
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