For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

होश की मैं पैमाइश हूँ:........ग़ज़ल, पंकज मिश्र..........इस्लाह की विनती के साथ

22 22 22 2

मयख़ानों की ख़ाहिश हूँ
होश की मैं पैमाइश हूँ

चाँद न कर मुझ पर काविश
ब्लैक होल की नाज़िश हूँ

हल ना कर पाओगे तुम
ज़िद की ऐसी नालिश हूँ

जल जाएगा हुस्न तेरा
मैं सूरज की ताबिश हूँ

आ मत मेरी राहों में
तूफ़ानों की जुंबिश हूँ

मौलिक अप्रकाशित

उर्दू का ज्ञान लगभग शून्य है, इसलिए, मुझे सन्देह है कि शायद मेरे भाव अस्पष्ट हों..….इसलिए हार्दिक विनती है कि इस ग़ज़ल के कथ्य पर भी सुझाव दिया जाए

Views: 657

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on November 24, 2018 at 3:07pm

आदरणीय अजय सर सादर प्रणाम।

एक प्रयास था....बस....सुधार की कोशिह जारी है

Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on November 24, 2018 at 3:06pm

आदरणीय बाऊजी सादर प्रणाम और बहुत बहुत आभार

Comment by Ajay Tiwari on November 17, 2018 at 4:48pm

आदरणीय पंकज जी, रदीफ़ और काफ़िया ऐसा चुने जिसमें कथ्य के प्रभावी विस्तार की पर्याप्त जगह हो. शेष आदरणीय समर साहब कह चुके हैं.आख़िरी शेर अच्छा लगा. एक अच्छी कोशिश के लिए हार्दिक बधाई.

Comment by Samar kabeer on November 15, 2018 at 2:32pm

अज़ीज़म पंकज कुमार मिश्रा आदाब, सबसे पहले आपकी ग़ज़ल के क़वाफ़ी के अर्थ देखते हैं :-

"ख़्वागीश"--आरज़ू,तमन्ना

"पैमाइश"---नाप,ख़ुसूसन ज़मीन का नाप

"काविश"---तलाश

"नाज़िश"---फ़ख़्र(गर्व),घमण्ड,मुहावरा-नाज़ होना,फ़ख़्र(गर्व) होना

"नालिश"---रोना-पीटना,फ़रयाद,दुहाई

"ताबिश"---हरारत,गर्मी,तपिश,चमक,धूप की चमक,रोशनी,नूर

"जुम्बिश"--हरकत,हिलना-जुलना

'  मयख़ानों की ख़ाहिश हूँ
होश की मैं पैमाइश हूँ'

मतला क़वाफ़ी के अर्थ के मुताबिक़ सहीह नहीं,इन्हीं क़वाफ़ी में मतला यूँ हो सकता है:-

"नभ पाने की ख़्वाहिश हूँ

धरती की पैमाइश हूँ"

'  चाँद न कर मुझ पर काविश
ब्लैक होल की नाज़िश हूँ'

इस शैर को यूँ कर सकते हैं:-

'चाँद न कर मेरी काविश

ब्लैक होल की नाज़िश हूँ'

' हल ना कर पाओगे तुम
ज़िद की ऐसी नालिश हूँ'

इस शैर का भाव स्पष्ट नहीं,इसे यूँ कर सकते हैं:;

'तोड़ न इसको पाओगे

मैं वो ज़िद की साज़िश हूँ''

जल जाएगा हुस्न तेरा
मैं सूरज की ताबिश हूँ

आ मत मेरी राहों में
तूफ़ानों की जुंबिश हूँ'

ये दो अशआर ठीक हैं ।

बाक़ी शुभ शुभ ।

Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on November 14, 2018 at 3:28pm

जी प्रणाम, मुझे इन्तज़ार है

Comment by Samar kabeer on November 14, 2018 at 12:04pm

आपकी ग़ज़ल पर पुनः आता हूँ,समय मिलते ही ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर आपने सर्वोत्तम रचना लिख कर मेरी आकांक्षा…"
2 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"वो भी क्या दिन थे... आँख मिचौली भवन भरे, पढ़ते   खाते    साथ । चुराते…"
2 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"माता - पिता की छाँव में चिन्ता से दूर थेशैतानियों को गाँव में हम ही तो शूर थे।।*लेकिन सजग थे पीर न…"
5 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"वो भी क्या दिन थे सखा, रह रह आए याद। करते थे सब काम हम, ओबीओ के बाद।। रे भैया ओबीओ के बाद। वो भी…"
8 hours ago
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"स्वागतम"
20 hours ago
धर्मेन्द्र कुमार सिंह posted a blog post

देवता चिल्लाने लगे हैं (कविता)

पहले देवता फुसफुसाते थेउनके अस्पष्ट स्वर कानों में नहीं, आत्मा में गूँजते थेवहाँ से रिसकर कभी…See More
22 hours ago
धर्मेन्द्र कुमार सिंह commented on धर्मेन्द्र कुमार सिंह's blog post देश की बदक़िस्मती थी चार व्यापारी मिले (ग़ज़ल)
"बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय,  मिथिलेश वामनकर जी एवं आदरणीय  लक्ष्मण धामी…"
23 hours ago
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185

परम आत्मीय स्वजन, ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 185 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
Wednesday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Wednesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, प्रस्तुति पर आपसे मिली शुभकामनाओं के लिए हार्दिक धन्यवाद ..  सादर"
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

आदमी क्या आदमी को जानता है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२२ कर तरक्की जो सभा में बोलता है बाँध पाँवो को वही छिप रोकता है।। * देवता जिस को…See More
Tuesday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Monday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service