अहसासों के टोस्ट: ३ क्षणिकाएं
मर्म
सपनों का
बिना
काया का
साया
न अपना
न पराया
.................
कितने लम्बे
सपनों के धागे
सोच के पाँव
आसमाँ से आगे
नैन जागें
तो ये टूटें
नैन सोएं
तो ये जागें
......................
सर्द सवेरा
चाय की प्याली
उठती भाप
अहसासों के टोस्ट
नज़रों की चुस्कियाँ
उम्र के ठहराव पर
काँपते हाथों सी
ठिठुरती यादें
देर तक
टहलती रहीं
ठंडी होती
चाय की प्याली में
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आदरणीया राजेश कुमारी जी सृजन पर आपकी मोहक प्रशंसा का दिल से आभार।
आदरणीय राज़ नवादवी साहिब, आदाब सृजन के भावों को आत्मीय मान देने का दिल से आभार।
आदरणीय समर कबीर साहिब, आदाब सृजन के भावों को आत्मीय मान देने एवं सुझाव देने का दिल से आभार। भविष्य में इस बात को अमल में ज़रूर लाऊंगा। थैंक्स।
आद० सुशील सरना जी बहुत बहुत बधाई तीनो ही क्षणिकाएं उम्दा हुई हैं
जनाब सुशील सरना जी आदाब,बहुत भावपूर्ण क्षणिकाएँ, मर्म सपनों का...कितने लम्बे सपनों के धागे....नज़रों की चुस्कियाँ....बहुत ही सशक्त एवं मार्मिक अभिव्यक्ति. हार्दिक बधाई. सादर.
जनाब सुशील सरना जी आदाब,बहुत उम्दा क्षणिकाएँ लिखी हैं आपने,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
एक बात आपके संज्ञान में लाना चाहूँगा, और वो ये कि 'अहसास' शब्द का बहुवचन "अहसासात" होता है ।
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