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चुनौती दे डाली,,,,,,

चुनौती दे डाली ....


खिड़कियों के पर्दों ने
रोशनी के प्रभुत्व को
चुनौती दे डाली

जुगनुओं की चमक ने
अंधेरों के प्रभुत्व को
चुनौती दे डाली

अंतस की पीड़ा ने
आँखों के सैलाबों को
चुनौती दे डाली,........

विरह के अभयारण्य ने
स्मृतियों के भंडारण को
चुनौती दे डाली

बिस्तर की सलवटों ने
क्षणों की चाल को
चुनौती दे डाली

जीत के आसमान को
हार की ज़मीन ने
चुनौती दे डाली

देह के प्रभुत्व को
श्वासों के आरोह -अवरोह ने
चुनौती दे डाली

और

मैं के दम्भ को
मरघट की चिता ने
चुनौती दे डाली


सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment

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Comment by Sushil Sarna on December 1, 2018 at 3:33pm

आदरणीय राज नवदेवी साहिब , आदाब .... सृजन के भावों पर आपकी आत्मीय प्रशंसा का दिल से आभार।

Comment by राज़ नवादवी on December 1, 2018 at 11:06am

खिड़कियों के पर्दों ने 
रोशनी के प्रभुत्व को 
चुनौती दे डाली

जुगनुओं की चमक ने 
अंधेरों के प्रभुत्व को 
चुनौती दे डाली

वाह, बहुत खूब, चुनौती डे डाली. आदरणीय सुनील सरना जी, सुन्दर कविता की प्रस्तुति पे हार्दिक बधाई. सादर. 

Comment by Sushil Sarna on November 30, 2018 at 2:53pm

आदरणीय नरेन्द्र सिंह चौहान जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार।

Comment by Sushil Sarna on November 30, 2018 at 2:52pm

आदरणीय समर कबीर साहिब , आदाब .... सृजन के भावों पर आपकी मधुर प्रशंसा का दिल से आभार।

Comment by narendrasinh chauhan on November 28, 2018 at 4:04pm

खूब सुन्दर रचना के लिए बधाई स्वीकार कर्रे। 

Comment by Samar kabeer on November 28, 2018 at 3:13pm

जनाब सुशील सरना जी आदाब,अच्छी कविता लिखी आपने,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

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