For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

हौं पंडितन केर पछलगा -उपन्यास का एक अंश

 जायस के ऊसर में खानकाह बने कई माह बीत चुके थे I किछौछा से आये हजरत खवाजा मखदूम जहाँगीर किसी परिचय के मोहताज नही थे I बहुत जल्द ही उनके पास मुरीदों और मन्नतियों की भीड़ आने लगी i मुहम्मद यद्यपि छोटा था पर वह अक्सर वहाँ जाने लगा i वह बुजुर्ग पीर के छोटे-मोटे काम कर देता I पीर तो उसका भविष्य जान ही चुके थे I  वह भी उसे अपने पोते की तरह मानने लगे I

 एक दिन पीर सफ़ेद भेड़ की उन का लम्बा चोगा पहने अपनी पसंदीदा खानकाह में बैठे थे I उनके चेले और कुछ मजहबपरस्त लोग उन्हें घेरे हुए थे I

‘पीर बाबा, सूफी का अल्लाह का देख सकत है ?’ एक ने पूछा I

‘अल्लाह दिखता नहीं , उसका अनुभव होता है I यह अनुभव सभी लोग कर सकते हैं I

‘ऊ कैसे ?’

‘अरे भाई यह सारी खुदाई ऊपर वाले का अक्स ही तो है I

‘पैगम्बर तो यह नहीं मानते ?’

‘पर सूफी मानता है I जिस प्रकार एक सूरज पानी से भरे सैकड़ों घड़ों में दिखता है I वैसे ही अल्लाह भी हर जगह हर वस्तु में है I1

‘यह तो हिन्दू भी कहते हैं ?’

‘हिन्दू तो यह भी मानता है कि वह ऊपर वाले का ही एक हिस्सा है जैसे पानी की बूँद महासागर का हिस्सा है I पर सूफी यह नहीं मानता I हम जैसे आईने में अपनी तस्वीर देखते है तस्वीर हू-बहू हमारे जैसी होती है I पर वास्तव में वह तस्वीर हम नहीं है I वैसे ही यह खुदाई उसकी तस्वीर है पर खुदा अलग है I

‘क्या हम अल्लाह को पा सकते हैं ?’- एक अन्य शागिर्द ने प्रश्न किया I

‘हाँ, पा सकते है I

‘पर कैसे ---?’

‘मुहब्बत से --- अल्लाह से मुहब्बत करो I अल्लाह की बनाई चीजों से मुहब्बत करो I आदमी हो तो हर आदमी से मुहब्बत करो I मुहब्बत का पैगाम सारी दुनिया में बाँटो I अपने दिल में नफरत का भाव आने न दो I

‘यह कैसे हो सकता है ? गलीज चीजों से तो खुद ब खुद नफरत हो जाती है I

‘यह रियाज से मुमकिन है I मन को साधना पड़ता है I

‘अल्लाह को देखा नहीं  तो उससे मुहब्बत कैसे होगी ?’

‘अरे भाई, अभी तो कहा यह सारी खुदाई ही अल्लाह की तस्वीर है, इसे तो देखते हो न ?’

 शिष्य चुप हो गया I इसी समय मुहम्मद अपने चार यारों के साथ उधर आया I वह  पहले हाजी शेख की खानकाह में गया i वहाँ वे साधना में व्यस्त थे I उनके मुरीद मुबारक शाह और शेख कमाल खाना बनाने में मशगूल थे I मुहम्मद वहाँ  झांककर कर लौट आया i तभी उसे दूसरे खानकाह से बड़े पीर की बुलंद आवाज आती सुनायी दी I वह धीरे से वहाँ प्रविष्ट हुआ और पीछे जाकर घुटनों के बल बैठ गया I

 अशरफ जहांगीर ने जैसे ही अपना वक्तव्य समाप्त किया I मुहम्मद उठ खड़ा हुआ I

‘पीर बाबा, मुहब्बत किसे कहते हैं ?’ –उसने भोलेपन से पूछा I

 जहाँगीर चिश्ती के माथे पर बल पड़ गए I यह तो बाकमाल सवाल है और इस पिद्दी से बच्चे ने पूछा I

‘शाबाश बच्चे !’ पीर ने गद्गद होकर कहा I - ‘तो सुनो बेटे ---और आप सब भी सुनें ‘ – पीर ने शागिर्दों की ओर इशारा करते हुए कहा - मुहब्बत एक अहसास है I यह अनेक जज्बों और रवैयों का मिश्रण है,  जो शिद्दते दिल से महसूस किया जाता है I यह एक मज़बूत खिंचाव है,  जो शब्दों में बयां नहीं हो सकता I हम अपनी मेहर, अपनी चाहत, अपना ख़ुलूस बजरिये मुहब्बत जाहिर करते हैं I अपनी माशूका के लिये अक्सर आदमी के दिल में ऐसी तड़प पैदा होती है कि बिना उसके दीदार के उसे किसी सूरत चैन नहीं मिलता I वैसी ही तड़प जब अल्लाह के लिए हमारे मन में पैदा हो जाए तो वही सच्चा तसव्वुफ़ है I वही सूफियत यकीनी है I सूफी अल्लाह के विछोह में दिन-रात तड़पता है I वह अपने महबूब खुदा के लिए मौत तक को गले लगाने के लिये बावला रहता है I

इतना कहकर पीर बाबा चुप हो गए I उन्होंने एक अंगौछे से अपना चेहरा साफ़ किया I लोटे से थोड़ा जल पिया I  फिर चेलों की और देखकर बोले – ‘देखो बच्चों अभी तुम यह जो इल्म ले रहे हो,  फ़कत जबानी है I इसमें खुद को ढालना भी होगा I मगर यह जानकारी भी उतनी ही जरूरी है I कल मैं शरीयत, तरीकत, मारिफत और हकीकत के बारे में कुछ बताऊंगा I शुरुआत मैं मोमिन बनने ----‘ कहते-कहते पीर बाबा अचानक चुप हो गए I उन्होंने अचानक आँखे बंद कर ली I कुछ देर तक होठों में बुदबुदाते रहे मानो किसी से बात कर रहे हों, फिर उन्होंने उसी मुद्रा में पुकार कर कहा–‘ मुहम्मद बेटा, अभी के अभी अपने घर जाओ I तुम्हारे अब्बू की तबीयत अचानक खराब हो गयी है I

 (मौलिक / अप्रकाशित )

 

 

11

Views: 654

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 7, 2018 at 12:53pm

आ० धामी जी . सादर आभार . प्रकाशित होते ही सूचित करूंगा . 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 6, 2018 at 7:14pm

आ. भाई गोपाल नारायण जी, सादर अभिवादन । उपन्यास का अंश रोचक है । हार्दिक बधाई । प्रकाशन पर सूचित करें जिससे उसे सम्पूर्णता में पढ़ सकू । 

Comment by Samar kabeer on December 6, 2018 at 11:30am

मेरी बधाई,और शुभकामनाएं ।

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 5, 2018 at 8:39pm

आदरणीय समर कबीर साहिब , उपन्यास पूरा हो चूका है i प्रूफ  फिर से ठीक कर रहा हूँ  फिर प्रकाशन में जायेगी  i आपको प्रति जरूर भजूंगा i सादर i 

Comment by Samar kabeer on December 5, 2018 at 2:30pm

जनाब डॉ. गोपाल नारायण श्रीवास्तव जी आदाब,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें,उपन्यास का बेचैनी से इन्तिज़ार है ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन।प्रदत्त विषय पर सुन्दर प्रस्तुति हुई है। हार्दिक बधाई।"
29 minutes ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"बीते तो फिर बीत कर, पल छिन हुए अतीत जो है अपने बीच का, वह जायेगा बीत जीवन की गति बावरी, अकसर दिखी…"
3 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"वो भी क्या दिन थे,  ओ यारा, ओ भी क्या दिन थे। ख़बर भोर की घड़ियों से भी पहले मुर्गा…"
5 hours ago
Ravi Shukla commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आदरणीय गिरिराज जी एक अच्छी गजल आपने पेश की है इसके लिए आपको बहुत-बहुत बधाई आदरणीय मिथिलेश जी ने…"
9 hours ago
Ravi Shukla commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय मिथिलेश जी सबसे पहले तो इस उम्दा गजल के लिए आपको मैं शेर दर शेरों बधाई देता हूं आदरणीय सौरभ…"
9 hours ago
Ravi Shukla commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post साथ करवाचौथ का त्यौहार करके-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी बहुत अच्छी गजल आपने कहीं करवा चौथ का दृश्य सरकार करती  इस ग़ज़ल के लिए…"
9 hours ago
Ravi Shukla commented on धर्मेन्द्र कुमार सिंह's blog post देश की बदक़िस्मती थी चार व्यापारी मिले (ग़ज़ल)
"आदरणीय धर्मेंद्र जी बहुत अच्छी गजल आपने कहीं शेर दर शेर मुबारक बात कुबूल करें। सादर"
10 hours ago
Ravi Shukla commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post आदमी क्या आदमी को जानता है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी गजल की प्रस्तुति के लिए बहुत-बहुत बधाई गजल के मकता के संबंध में एक जिज्ञासा…"
10 hours ago
Ravi Shukla commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय सौरभ जी अच्छी गजल आपने कही है इसके लिए बहुत-बहुत बधाई सेकंड लास्ट शेर के उला मिसरा की तकती…"
10 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर आपने सर्वोत्तम रचना लिख कर मेरी आकांक्षा…"
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"वो भी क्या दिन थे... आँख मिचौली भवन भरे, पढ़ते   खाते    साथ । चुराते…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"माता - पिता की छाँव में चिन्ता से दूर थेशैतानियों को गाँव में हम ही तो शूर थे।।*लेकिन सजग थे पीर न…"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service