For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

1212 1122 1212 22
हर एक शख्स को मतलब है बस ख़ज़ाने से ।
गिला करूँ मैं कहाँ तक यहां ज़माने से ।।

कलेजा अम्नो सुकूँ का निकाल लेंगे वो ।।
उन्हें है वक्त कहाँ बस्तियां जलाने से ।।

न पूछ हमसे अभी जिंदगी के अफसाने ।
कटी है उम्र यहां सिसकियां दबाने से ।।

मैं अपने दर्द को बेशक़ छुपा के रक्खूँगा ।
मिले जो चैन तुझे मेरे मुस्कुराने से ।।

हमारे हक़ पे न हमला करो यहां साहब ।
चलेगा मुल्क़ नहीं इस तरह चलाने से ।।

वो रूठते हैं तो कुछ और आना जाना रख ।
बनेग़ा यार कोई  सिलसिले बनाने से ।।

बड़ें यकीन से कहकर गया है फिर कोई ।
खुदा मिलेंगे तुझे दूरियां मिटाने से ।।

भरम बनाए रखें दोस्ती का दुनिया में ।
ये रिश्ते टूट न जाएं यूँ आजमाने से ।।

उसे पता है हवाओं का रुख किधर है अब ।
बुझेगी आग यहां आग फिर लगाने से ।।

ये आंख कुछ तो बताती है आपकी फ़ितरत ।
छुपा  है  दर्द  कहाँ  आपके  छुपाने से ।।

अजीब दौर है इंशानियत  नहीं दिखती ।
ज़मीर बेच रहे लोग फ़िर बहाने से ।।


        -- नवीन मणि त्रिपाठी
मौलिक अप्रकाशित

Views: 406

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Naveen Mani Tripathi on December 18, 2018 at 12:44pm

आ0 फूल सिंह साहब हार्दिक आभार ।

Comment by Naveen Mani Tripathi on December 18, 2018 at 12:43pm
आ0 दयाराम मैथानी साहब हार्दिक आभार
Comment by Dayaram Methani on December 13, 2018 at 11:06pm

बड़ें यकीन से कहकर गया है फिर कोई ।
खुदा मिलेंगे तुझे दूरियां मिटाने से ।।.........बहुत ही सुंदर भाव भरा शेर।

भरम बनाए रखें दोस्ती का दुनिया में ।
ये रिश्ते टूट न जाएं यूँ आजमाने से ।।..........जीवन की सच्चाई व्यक्त करता शेर।

आदरणीय बहुत अच्छी गज़ल हुई है। बधाई स्वीकार करें।

Comment by PHOOL SINGH on December 13, 2018 at 4:49pm

सूंदर रचना बधाई स्वीकारे"

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

रक्षिता सिंह replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"सादर प्रणाम, आदरणीय ।"
2 hours ago
रक्षिता सिंह replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"सुन, ससुराल में किसी से दब के रहने की कोई ज़रूरत नहीं है। अरे भाई, हमने कोई फ्री में सादी थोड़ी की…"
2 hours ago
Nilesh Shevgaonkar shared their blog post on Facebook
8 hours ago
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"स्वागतम"
20 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"आदरणीय गजेंद्र जी, हृदय से आभारी हूं आपकी भावना के प्रति। बस एक छोटा सा प्रयास भर है शेर के कुछ…"
20 hours ago
Gajendra shrotriya replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"इस कठिन ज़मीन पर अच्छे अशआर निकाले सर आपने। मैं तो केवल चार शेर ही कह पाया हूँ अब तक। पर मश्क़ अच्छी…"
21 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"आदरणीय गजेंद्र ji कृपया देखिएगा सादर  मिटेगा जुदाई का डर धीरे धीरे मुहब्बत का होगा असर धीरे…"
22 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"चेतन प्रकाश जी, हृदय से आभारी हूं।  साप्ताहिक हिंदुस्तान में कोई और तिलक राज कपूर रहे होंगे।…"
22 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"धन्यवाद आदरणीय धामी जी। इस शेर में एक अन्य संदेश भी छुपा हुआ पाएंगे सांसारिकता से बाहर निकलने…"
22 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"आदरणीय,  विद्यार्जन करते समय, "साप्ताहिक हिन्दुस्तान" नामक पत्रिका मैं आपकी कई ग़ज़ल…"
22 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"वज़न घट रहा है, मज़ा आ रहा है कतर ले मगर पर कतर धीरे धीरे। आ. भाई तिलकराज जी, बेहतरीन गजल हुई है।…"
23 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"आ. रिचा जी, अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए धन्यवाद।"
23 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service