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दिया आप ने था हमें जो सिला कुछ ।
बड़ा फैसला हमको लेना पड़ा कुछ ।।

कहा किसने अब तक नहीं है जला कुछ ।
धुंआ रफ़्ता रफ़्ता है घर से उठा कुछ ।।

बहुत हो चुकी अब यहाँ जुमले बाजी ।
तुम्हारे मुख़ालिफ़ चली है हवा कुछ ।।

बहुत दिन से ख़ामोश दिखता है मंजर ।
कई दिल हैं टूटे हुआ हादसा कुछ ।।

कदम मंजिलों की तरफ बढ़ गए जब ।
तो अब पीछे मुड़कर है क्या देखना कुछ।।

मेरा ऐब सबको बताने से पहले ।
जरा देखिए आप भी आइना कुछ।।

मेरे कत्ल पर तो उँगलियाँ उठेंगी ।
करें इत्तला सबको मेरी ख़ता कुछ ।।

करेंगे यकीं कब तलक लोग तुम पर ।
मिला ज़ख़्म तुमसे कई मर्तबा कुछ ।।

ज़माने की नजरें ख़फ़ा सी लगीं तब ।
तेरी शाख पर जब भी चर्चा हुआ कुछ।।

यहां छीन कर ही मिला है कोई हक ।
करो जंग हो गर बचा हौसला कुछ ।।

तुम्हारे ये हालात बदले न होते ।
अगर याद करते हमारी वफ़ा कुछ ।।

--नवीन मणि त्रिपाठी मौलिक अप्रकाशित

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Comment by राज़ नवादवी on December 10, 2018 at 1:45pm

हार्दिक बधाई आदरणीय नवीन मणि जी. सुन्दर गज़ल. सादर. 

Comment by narendrasinh chauhan on December 10, 2018 at 12:15pm

 बधाई आदरणीय नवीनजी।खूब सुन्दर  गज़ल।

Comment by Naveen Mani Tripathi on December 9, 2018 at 10:11pm

आ0 तेजवीर सिंह साहब तहे दिल से बहुत बहुत आभार ।

Comment by Naveen Mani Tripathi on December 9, 2018 at 10:10pm

आ0 कबीर सर सादर नमन । महत्व पूर्ण इस्लाह के लिए हार्दिक आभार ।

Comment by TEJ VEER SINGH on December 9, 2018 at 12:28pm

हार्दिक बधाई आदरणीय नवीन मणि जी।बेहतरीन गज़ल।

बहुत हो चुकी अब यहाँ जुमले बाजी ।
तुम्हारे मुख़ालिफ़ चली है हवा कुछ ।।

Comment by Samar kabeer on December 9, 2018 at 10:53am

जनाब नवीन मणि त्रिपाठी जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।

'  मेरे कत्ल पर तो उँगलियाँ उठेंगी'

इस मिसरे को यूँ कर लें:-

'मेरे क़त्ल पर उंगलियाँ तो उठेंगी'

Comment by राज़ नवादवी on December 8, 2018 at 10:08pm

आदरणीय नवीन मणि त्रिपाठी जी, आदाब, सुन्दर ग़ज़ल की प्रस्तुति पे हार्दिक बधाई. सादर. 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 8, 2018 at 7:38pm

आ. भाई नवीन मणि जी, अच्छी गजल हुयी है । हार्दिक बधाई ।

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