अच्छी लगी है आपकी तिरछी नज़र मुझे ।।
समझा गयी जो प्यार का ज़ेरो ज़बर मुझे ।।1
आये थे आप क्यूँ भला महफ़िल में बेनक़ाब ।
तब से सुकूँ न मिल सका शामो सहर मुझे ।।2
नज़दीकियों के बीच बहुत दूरियां मिलीं ।
करना पड़ा है उम्र भर लम्बा सफर मुझे ।।3
पत्ते भी साथ छोड़ के जाते खिंजां में हैं ।
रोता हुआ ये दर्द बताया शज़र मुझे ।।4
ये वक्त जश्न का है मेरी ईद आज है ।
जब मुद्दतों के बाद दिखा है क़मर मुझे ।।5
ख़ामोश हूँ मैं कब से ज़माने के दर्द पर ।
सुहबत थी आपकी जो हुआ है असर मुझे ।।6
किस किस पे मैं यक़ीन करूँ ऐ खुदा बता ।
ख़ंजर को जब चुभाए मेरा मोतबर मुझे ।।7
अपनी ख़ता पे आज वो चहरे उदास हैं ।।
करने चले थे शौक से जो बेकदर मुझे ।।8
किस्मत को राह खूब पता है मियाँ यहां ।
ले जाएगी उधर ही वो जाना जिधर मुझे ।।9
मुहमोड़ कर वो चल दिये आया बुरा जो वक्त ।
जो कह रहे थे गर्व से अपना जिग़र मुझे ।।10
इस मैकदे को छोड़ के तौबा करूँ सनम ।
मिल जाये थोड़ी आपसे इज्ज़त अगर मुझे ।।11
मत पूछिए हुजूऱ मेरा हाल चाल अब ।
रहती है आजकल कहाँ अपनी ख़बर मुझे ।।12
नवीन मणि त्रिपाठी मौलिक अपर
अ प्रकाशित
Comment
आ. भाई नवीन जी, गजल का अच्छा प्रयास हुआ है । हार्दिक बधायी ।
आ0 कबीर सर अति महत्वपूर्ण इस्लाह हेतु सादर नमन के साथ हार्दिक आभार ।
जनाब नवीन मणि त्रिपाठी जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।
'रोता हुआ ये दर्द बताया शज़र मुझे'
इस मिसरे को यूँ कर लें,गेयता बढ़ जाएगी:-
'रोकर बता रहा था ये इक दिन शजर मुझे'
' जब मुद्दतों के बाद दिखा है क़मर मुझे'
इस मिसरे को यूँ करें,गेयता बढ़ जाएगी:-
'मुद्दत के बाद आज दिखा है क़मर मुझे'
' सुहबत थी आपकी जो हुआ है असर मुझे'
इस मिसरे को यूँ कर लें,गेयता बढ़ जाएगी:-
'सुहबत का आपकी ये हुआ है असर मुझे'
7वें शैर में क़ाफ़िया काम नहीं कर रहा है ।
' करने चले थे शौक से जो बेकदर मुझे'
इस मिसरे में 'बेक़दर' को "दर ब दर'" करना उचित होगा ।
' किस्मत को राह खूब पता है मियाँ यहां'
इस मिसरे में'मियाँ यहाँ' को "यहाँ मियाँ" कर लें ।
बाक़ी शुभ शुभ ।
आदरणीय नवीन जी बहुत बेहतरीन गजल लिखी आपने बधाई कुबूल कीजिए
आ0 तेजवीर सिंह साहब हार्दिक आभार और नमन ।
आ0 श्याम नारायण वर्मा साहब नमन और हार्दिक आभार ।
हार्दिक बधाई आदरणीय नवीन मणि जी।बेहतरीन गज़ल।
अपनी ख़ता पे आज वो चहरे उदास हैं ।।
करने चले थे शौक से जो बेकदर मुझे ।।8
आदरणीय नवीन मणि त्रिपाठी जी प्रणाम ,बहुत ही बढ़िया ग़ज़ल ....हार्दिक बधाई। सादर
आ0 राज़ नावादवी साहब तहेदिल से शुक्रिया
आदरणीय नवीन मणि त्रिपाठी साहब, आदाब. सुन्दर ग़ज़ल की प्रस्तुति के लिए दाद के साथ मुबारकबाद. सादर
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