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वो भौरे पास हैं जब से कली के ।
हैं बिखरे रंग तब से पाँखुरी के ।।
सुना है चांद आएगा जमी पर ।
बढ़े हैं हौसले अब चांदनी के ।।
जरा कमसिन अदाएं देखिए तो ।
अजब अंदाज़ उनकी बेख़ुदी के ।।
वो बेशक पास मेरे आ रही है ।
लगे हैं स्वर सही कुछ बाँसुरी के ।।
मुहब्बत हो गयी उनसे जो मेरी ।
हुए मशहूर किस्से आशिकी के ।।
तुम्हारा खत मिला जो आज मुझको ।
निकल आये हैं आंसू फिर खुशी के ।।
चली आया करो श्रृंगार के बिन ।
हैं कायल सब तुम्हारी सादगी के ।।
तेरे आने से है महफ़िल ये रोशन ।
असर जाने लगे हैं तीरगी के ।।
वही हैं भार इस धरती पे यारो ।
नहीं जो काम आते आदमी के ।।
तरक्की देख ली मैंने तुम्हारी ।
यहाँ मुद्दे दिखे फिर भुखमरी के ।।
--नवीन मणि त्रिपाठी मौलिक अप्रकाशित
Comment
आ0 तेजवीर सिंह साहब हार्दिक आभार ।
हार्दिक बधाई आदरणीय नवीन मणि जी।बेहतरीन गज़ल।
तरक्की देख ली मैंने तुम्हारी ।
यहाँ मुद्दे दिखे फिर भुखमरी के ।।
आ0 लक्ष्मण धामी मुसाफ़िर साहब हार्दिक आभार ।
आ0 गुरुदेव कबीर सर सादर नमन के साथ आभार ।
आ. भाई नवीन जी , सुंदर गजल हुयी है । हार्दिक बधाई ।
जनाब नवीन मणि त्रिपाठी जी आदाब,ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ है,बधाई स्वीकार करें ।
कुछ मिसरों में टंकण त्रुटियां देखें ।
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