१२२२/१२२२/१२२२/१२२२
हुआ कुर्सी का अब तक भी नहीं दीदार जाने क्यों
वो सोचें बीच में जनता बनी दीवार जाने क्यों।१।
बड़ा ही भक्त है या फिर जरूरत वोट पाने की
लिया करता है मंदिर नाम वो सौ बार जाने क्यों ।२।
तिजारत वो चुनावों में हमेशा वोट की करते
हकों की बात भी लगती उन्हें व्यापार जाने क्यों ।३।
नतीजा एक भी अच्छा नहीं जनता के हक में जब
यहाँ सन्सद में होती है महज तक़रार जाने क्यों।४।
बहुत बढ़चड़ के करते हैं चुनाओं में सभी नेता
हुआ करते नहीं वादे मगर साकार जाने क्यों।५।
बिना कुर्सी के उम्मीदें जताते देश बदलेंगे
मगर कुर्सी को पाकर सब हुए लाचार जाने क्यों।६।
मौलिक/अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
Comment
आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, बहुत सुंदर कटाक्ष किया है आपने। सुंदर सुजन के लिए बधाई।
बड़ा ही भक्त है या फिर जरूरत वोट पाने की
लिया करता है मंदिर नाम वो सौ बार जाने क्यों ।२। ........ बहुत प्यारा कटाक्ष।
तिजारत वो चुनावों में हमेशा वोट की करते
हकों की बात भी लगती उन्हें व्यापार जाने क्यों ।३। .........सही बात कही आपने।
आदरणीय चौथे शोर में आपने संसद को जान कर सन्सद लिखा है या टंकण त्रुटि है। कृपया आप देख लें । सादर।
बिना कुर्सी के उम्मीदें जताते देश बदलेंगे
मगर कुर्सी को पाकर सब हुए लाचार जाने क्यों।६।----वाह वाह , बहुत बढ़िया धामी जी I
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