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गज़ल - प्यार को वो आज़माना चाहता है

2122, 2122, 2122

ग़ज़ल
******

प्यार को वो आज़माना चाहता है
आसमाँ धरती पे लाना चाहता है//१

बांधकर जंज़ीर वो पंछी के पर में
इश्क़ का कलमा पढ़ाना चाहता है//२

बात दिल की जब ज़ुबाँ पे आ गई तो
और अब वो क्या छिपाना चाहता है//३

आंखों में उसकी जफ़ा दिखने लगी तो
मुझपे वो तोहमत लगाना चाहता है//४

इश्क़ में जलकर के मैं कुन्दन हुआ, वो
आग से मुझको डराना चाहता है//५

क़त्ल पहले कर दिया वो ज़िंदगी का
यूँ ही अब आँसूं दिखाना चाहता है//६

बेचकर ईमान पाया है महल जो
उसका वो रुतबा दिखाना चाहता है//७

रात में जो लूटता है शह्र सारा
दिन में वो पहरा लगाना चाहता है//८

आदमी की मूर्खता की क्या कहें, वो
दर्द देकर प्यार पाना चाहता है//९

-- क़मर जौनपुरी

मौलिक अप्रकाशित

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Comment by Mahendra Kumar on January 4, 2019 at 7:31pm

रात में जो लूटता है शह्र सारा
दिन में वो पहरा लगाना चाहता है

बढ़िया ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए आदरणीय क़मर जौनपुरी साहिब. सादर.

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on January 3, 2019 at 3:56pm

वाह खूब ज़नाब जौनपुरी जी..आदरणीय समर जी की इस्लाह काबिले तारीफ है..

Comment by Samar kabeer on January 3, 2019 at 12:08pm

ठीक है,5वें शैर का ऊला बदलें ।

Comment by क़मर जौनपुरी on January 3, 2019 at 6:11am

बहुत बहुत शुकिया मोहतरम जनाब कबीर साहब रहनुमाई के लिए। आपके मशविरा के बाद ग़ज़ल कुछ यूं हुई है, पुनः देखने की गुजारिश है।

2122, 2122, 2122

ग़ज़ल
******

प्यार को वो आज़माना चाहता है
आसमाँ धरती पे लाना चाहता है//१

बांधकर डोरी वो पंछी के परों में
इश्क़ का कलमा पढ़ाना चाहता है//२

बात दिल की जब ज़ुबाँ पे आ गई तो
और अब वो क्या छिपाना चाहता है//३

आंखों में उसकी जफ़ा दिखने लगी अब
मुझपे वो तुहमत लगाना चाहता है//४

बन गया कुन्दन जला जो इश्क में मैं
आग से मुझको डराना चाहता है//५

क़त्ल पहले कर दिया है ज़िंदगी का
और अब आँसूं दिखाना चाहता है//६

बेचकर ईमान पाया है महल जो
उसका वो रुतबा दिखाना चाहता है//७

रात में जो लूटता है शह्र सारा
दिन में वो पहरा लगाना चाहता है//८

अब जहालत भर गई है आदमी में
दर्द देकर प्यार पाना चाहता है//९

-- क़मर जौनपुरी

Comment by Samar kabeer on January 2, 2019 at 12:32pm

जनाब क़मर जौनपुरी साहिब आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।

बांधकर जंज़ीर वो पंछी के पर में'

पंछी के पर ज़ंजीर से नहीं बाँधे जाते,इस मिसरे को यूँ कर सकते हैं:-

'बाँध कर धागे से वो पंछी के पर को'

' मुझपे वो तोहमत लगाना चाहता है'

इस मिसरे में 'तोहमत' को "तुहमत" कर लें ।

' इश्क़ में जलकर के मैं कुन्दन हुआ, वो'

इस मिसरे को यूँ कर लें:-

'इश्क़ में जलकर मैं कुंदन हो गया तो'

' क़त्ल पहले कर दिया वो ज़िंदगी का
यूँ ही अब आँसूं दिखाना चाहता है'

इस शैर को यूँ कर लें:-

'क़त्ल पहले कर दिया है ज़िन्दगी का

और अब आँसू दिखाना चाहता है'

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