2122, 2122, 2122
ग़ज़ल
******
प्यार को वो आज़माना चाहता है
आसमाँ धरती पे लाना चाहता है//१
बांधकर जंज़ीर वो पंछी के पर में
इश्क़ का कलमा पढ़ाना चाहता है//२
बात दिल की जब ज़ुबाँ पे आ गई तो
और अब वो क्या छिपाना चाहता है//३
आंखों में उसकी जफ़ा दिखने लगी तो
मुझपे वो तोहमत लगाना चाहता है//४
इश्क़ में जलकर के मैं कुन्दन हुआ, वो
आग से मुझको डराना चाहता है//५
क़त्ल पहले कर दिया वो ज़िंदगी का
यूँ ही अब आँसूं दिखाना चाहता है//६
बेचकर ईमान पाया है महल जो
उसका वो रुतबा दिखाना चाहता है//७
रात में जो लूटता है शह्र सारा
दिन में वो पहरा लगाना चाहता है//८
आदमी की मूर्खता की क्या कहें, वो
दर्द देकर प्यार पाना चाहता है//९
-- क़मर जौनपुरी
मौलिक अप्रकाशित
Comment
रात में जो लूटता है शह्र सारा
दिन में वो पहरा लगाना चाहता है
बढ़िया ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए आदरणीय क़मर जौनपुरी साहिब. सादर.
वाह खूब ज़नाब जौनपुरी जी..आदरणीय समर जी की इस्लाह काबिले तारीफ है..
ठीक है,5वें शैर का ऊला बदलें ।
बहुत बहुत शुकिया मोहतरम जनाब कबीर साहब रहनुमाई के लिए। आपके मशविरा के बाद ग़ज़ल कुछ यूं हुई है, पुनः देखने की गुजारिश है।
2122, 2122, 2122
ग़ज़ल
******
प्यार को वो आज़माना चाहता है
आसमाँ धरती पे लाना चाहता है//१
बांधकर डोरी वो पंछी के परों में
इश्क़ का कलमा पढ़ाना चाहता है//२
बात दिल की जब ज़ुबाँ पे आ गई तो
और अब वो क्या छिपाना चाहता है//३
आंखों में उसकी जफ़ा दिखने लगी अब
मुझपे वो तुहमत लगाना चाहता है//४
बन गया कुन्दन जला जो इश्क में मैं
आग से मुझको डराना चाहता है//५
क़त्ल पहले कर दिया है ज़िंदगी का
और अब आँसूं दिखाना चाहता है//६
बेचकर ईमान पाया है महल जो
उसका वो रुतबा दिखाना चाहता है//७
रात में जो लूटता है शह्र सारा
दिन में वो पहरा लगाना चाहता है//८
अब जहालत भर गई है आदमी में
दर्द देकर प्यार पाना चाहता है//९
-- क़मर जौनपुरी
जनाब क़मर जौनपुरी साहिब आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।
' बांधकर जंज़ीर वो पंछी के पर में'
पंछी के पर ज़ंजीर से नहीं बाँधे जाते,इस मिसरे को यूँ कर सकते हैं:-
'बाँध कर धागे से वो पंछी के पर को'
' मुझपे वो तोहमत लगाना चाहता है'
इस मिसरे में 'तोहमत' को "तुहमत" कर लें ।
' इश्क़ में जलकर के मैं कुन्दन हुआ, वो'
इस मिसरे को यूँ कर लें:-
'इश्क़ में जलकर मैं कुंदन हो गया तो'
' क़त्ल पहले कर दिया वो ज़िंदगी का
यूँ ही अब आँसूं दिखाना चाहता है'
इस शैर को यूँ कर लें:-
'क़त्ल पहले कर दिया है ज़िन्दगी का
और अब आँसू दिखाना चाहता है'
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online