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गज़ल : जाम का मौजज़ा दिखा साक़ी

2122 1212 22
ग़ज़ल
*****
जाम आंखों से अब पिला साक़ी
होश मेरे तू अब उड़ा साक़ी//१

ज़िन्दगी भर रहा हूँ मैं काफ़िर
अपना कलमा तू अब पढ़ा साक़ी//२

इल्म के बोझ से परेशां हूँ
इल्म सारे मेरे भुला साक़ी//३

रंग मेरा उतर गया अब तो
रंग अपना तू अब चढ़ा साक़ी//४

बेख़ुदी ज़ीस्त में समा जाए
जाम ऐसा कोई पिला साक़ी//५

ख़्वाब आएं तो सिर्फ तेरे हों
ख़्वाब से ख़्वाब तू मिला साक़ी//६

हो गया मैं फ़ना तेरे सदके
वाह क्या है तेरा नशा साक़ी//७

-- क़मर जौनपुरी

मौलिक अप्रकाशित

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Comment by क़मर जौनपुरी on January 12, 2019 at 7:30am

शुक्रिया मोहतरम समर कबीर साहब इस्लाह के लिए। उन दोनों अशआर को बदल दिया है मैंने।

सभी मोहतरम का बहुत बहुत शुक्रिया हौसला आफ़ज़ाई के लिए।

Comment by Kalim Yusufpuri on January 9, 2019 at 3:29am
जनाब जौनपुरी साहिब इस बेहतरीन ग़ज़ल पर दिल से मुबारकबाद पेश करता हूँ
Comment by Mahendra Kumar on January 7, 2019 at 8:12pm

इल्म के बोझ से दबा हूँ मैं
इल्म सारे मेरे भुला साक़ी 

बढ़िया ग़ज़ल हुई है आदरणीय क़मर जौनपुरी जी. हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए. सादर.

Comment by Sushil Sarna on January 6, 2019 at 1:53pm

जनाब जौनपुरी साहिब इस बेहतरीन ग़ज़ल पर दिल से मुबारकबाद कबूल फरमाएं।

Comment by राज़ नवादवी on January 6, 2019 at 1:26pm

जनाब  क़मर जौनपुरी साहब, सुन्दर ग़ज़ल की प्रस्तुति पे मुबारकबाद पेश करता हूँ. सादर. 

Comment by Samar kabeer on January 5, 2019 at 8:36pm

जनाब क़मर जौनपुरी साहिब आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।

होश आए न फिर कभी मुझको
जाम का मोजज़ा दिखा साक़ी'

किसी शाइर का शैर है:-

'होश आये न फिर कभी मुझको

आज इतनी पिलादे मय साक़ी'

इसलिए इस शैर को हटाना उचित होगा,वैसे भी सानी मिसरे में 'मोजिज़ा' शब्द मुनासिब नहीं ।

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