रेशमा की नजर फिर उस लड़की पर पड़ी जो कल ही यहाँ लायी गई थी. बेहद घबराई और लगातार रोती हुई वह लड़की देखने में तो किसी गरीब घर की ही लगती थी लेकिन पढ़ी लिखी भी लगती थी. उससे रहा नहीं गया तो वह उसकी तरफ बढ़ी और पास जाकर उसने पूछा "क्या नाम है रे तेरा और कहाँ से आयी है? यहाँ रोने धोने से कुछ नहीं होता, जितनी जल्दी सब मान लेगी, उतना बढ़िया. वर्ना तेरी दुर्गति ही होनी है यहां पर".
लड़की ने उसकी तरफ देखा, रेशमा की आँखों का सूनापन देखकर वह सिहर गयी. उसने रेशमा का हाथ पकड़ा और फफक पड़ी "मुझे यहाँ से बचा लो दीदी, मैं अपने घर वापस चली जाउंगी".
रेशमा ने उसकी पीठ सहलाई और समझ गयी कि यह घर से भागकर आयी है. "किसके साथ घर से भागी थी, तुम्हारे गांव का ही है या किसी रिश्तेदारी का", उसने लड़की से पूछा.
लड़की अब थोड़ी संयत हुई, अपने आंसू पोंछते हुए उसने कहा "बगल के गांव का लड़का था, साथ पढ़ाई किये थे तो उसकी बातों में आ गयी. आप मुझे बचा लो प्लीज".
रेशमा को थोड़ा गुस्सा आया, उसने लड़की को हल्का सा धक्का दिया और डपटते हुए बोली "घर से भागते समय नहीं सोचा था कि वह पिल्ला तुम्हारा प्रेमी नहीं दल्ला है. और अगर मैं तुझे निकाल सकती तो क्या खुद इस नर्क में रहती".
लड़की ने निराश नज़रों से रेशमा की तरफ देखा और धीरे से बोली "वह लड़का मेरा प्रेमी नहीं था, उसने मुझे नौकरी दिलाने का वादा किया था. गरीबी में ही मैंने अपना घर छोड़ा लेकिन ऐसे काम के बदले मैं मरना पसंद करुँगी".
रेशमा को झटका सा लगा, उसने लड़की को कसकर भींच लिया. उसकी निगाहों में अपना समय घूमने लगा जब वह भी इसी चक्कर में यहाँ फंसी थी. बेबसी में दो बून्द आंसू उसकी नज़रों से टपके और लड़की के बालों में गुम हो गए.
मौलिक एवम अप्रकाशित
Comment
इस प्रतिक्रिया के लिए बहुत बहुत आभार आ Mahendra Kumar जी
इस प्रतिक्रिया के लिए बहुत बहुत आभार आ सुरेन्द्र नाथ सिंह 'कुशक्षत्रप' जी
बढ़िया लघुकथा है आदरणीय विनय कुमार जी. हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए. सादर.
आद0 विनय जी सादर अभिवादन। बढ़िया लघुकथा कही आपने, बधाई स्वीकार कीजिये
आ० आपके प्रस्तुति का अंदाज इस कथा को विशेष धज देता है i बहुत बधाई i
इस प्रतिक्रिया के लिए बहुत बहुत आभार आ राजेश कुमारी जी
आज की दुनिया भरोसे के लायक नहीं है किन्तु गरीबी धोखा खा ही जाती है .अच्छी कहानी लिखी है विनय कुमार जी बहुत बहुत बधाई
बहुत बहुत आभार आ मुहतरम जनाब तेज वीर सिंह साहब
बहुत बहुत आभार आ मुहतरम जनाब समर कबीर साहब
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