लडकी ने साहस किया I एक दिन ट्रेन से उतरकर उसने लडके से कहा -‘आप को ऐतराज न हो तो हम साथ-साथ काफी पी सकते हैं ?’
‘यहाँ आप सर्विस करते हैं ?’ –काफी का सिप लेते हुए लडकी ने पूछा I
‘हाँ, डिग्री कालेज में हिन्दी पढाता हूँ i कुछ महीने पहले ही अप्वायंट हुआ हूँ i’
‘मैं बैंक में हूँ I’
‘जी ------‘
‘आप मुझसे कुछ कहना चाहते है ?’
‘मैं----? नही तो –‘
‘कमाल है, फिर इतने दिनों से ये नैना-फायटिंग क्यों चल रही है ?- अचानक लडकी की सहेली वहाँ प्रकट हुयी I
‘दरअसल --------‘ –लडका हकलाया –‘यह फर्स्ट-साईट-लव का मामला है I इट्स नेचुरल , इफ यू नो I पर गलती मेरी है, मुझे अपने पर नियंत्रण रखना चाहिए था अफ़सोस यह हो नहीं पाया I’
‘तो कौन सा पहाड़ टूट पड़ा ? यह भी तो तुम्हारे प्यार में ---है I यानी कोई समस्या ही नहीं?’
‘पर समस्या है, इसीलिये मेरी चेतना मुझे झिंझोड़ती है और रोकती है I ‘- युवक ने संजीदगी से कहा I
‘कौन सी समस्या ? कैसी चेतना ?’- सहेली ने भ्रमित होकर पूछा I
‘क्षमा कीजिएगा , मैं विवाहित हूँ I ’
((मौलिक व अप्रकाशित )
Comment
वाह्ह्ह्हह्ह्!
'माफ़ कीजिएगा..."
निःशब्द
वाह्ह्ह्हह्ह्!
अंतिम पंक्ति 'मैं विवाहित हूँ"
निःशब्द
बढ़िया लघुकथा है आदरणीय डॉ. गोपाल नारायण श्रीवास्तव जी। हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए। सादर।
आदाब। वाक़ई होता तो ऐसा भी है अधिकतर बुद्धिजीवी पुरूषों के साथ। आजकल की लड़िकयां तो यूं जुगाड़ से सब कुछ कह या कहलवा देतीं हैं और 'दूध का दूध, पानी का पानी' या 'एक-तरफ़ा प्रेमाकर्षण- कहानी' सुस्पष्ट हो जाती है, वरना पुरुष ही स्वयं से उलझता रहकर स्वयं पर भड़ास निकाल कर दूसरों के उपहास को यूं सहता रहता है।
गंभीर विषय पर बेहतरीन रचना हेतु हार्दिक बधाई आदरणीय डॉ. गोपाल नारायण श्रीवास्तव साहिब। रोचक शीर्षक यह भी हो सकता है : "साइड-लव-एट-फर्स्ट-साइट" या इसे लड़की के संवाद में कहलवाया जा सकता है कहीं?
जनाब डॉ. गोपाल नारायण श्रीवास्तव जी आदाब,अच्छी लघुकथा लिखी आपने,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
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