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गद्दार बन गये जो ढब आदर किया गया - गजल

२२१/२१२१/ २२२/१२१२


पाषाण पूजने को जब अन्दर किया गया
हर एक देवता को तब पत्थर किया गया।१।


उनके वतन से थी अधिक कुर्सी निगाह में
दूश्मन को इसके वास्ते सहचर किया गया।२।


यूँ  तो  चुनाव  जीतने  बातें  विकास  की
पर हाल देश का सदा कमतर किया गया।३।


शासक कमीन दे गये हमको वफा का दंड
गद्दार बन गये  जो  ढब  आदर किया गया।४।


जन की भलाई में बहुत करना था काम पर
दंगों को जीत  के  लिए  लश्कर किया गया।५।


अहसान जिसके बाप का थोड़ा था कौम पर
बेटों  को  उसके, देश  के  ऊपर  किया गया।६।


मौलिक/अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

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Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 29, 2019 at 4:57pm

आ. भाई सुरेंद्र जी, सादर आभार ।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 28, 2019 at 6:47am

आ. भाई महेंद्र जी, प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद । गजल को बेहर बनाने के लिए कमियों को बताते हुए मार्गदर्शन करें आभारी रहूँगा ।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 28, 2019 at 6:43am

आ. भाई रवि जी, सादर अभिवादन और प्रोत्साहन देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 28, 2019 at 6:41am

आ. भाई समर जी, सादर अभिवादन ।गजल की सराहना के लिए आभार । इंगित शेर में कहन का आशय यह है कि जिनको केवल कुर्सी (सत्ता)से म़ोह है उन्होने उसे पाने के लिए दुश्मनों से भी हाथ मिला लिया । सम्भव तया मैं इस भाव को सही से उकेर नहीं पाया । यदि सुधार की गुंजाइश हो तो मार्गदर्शन करें । 

Comment by Mahendra Kumar on January 27, 2019 at 11:19am

अच्छी ग़ज़ल है आदरणीय लक्ष्मण धामी जी पर अभी और बेहतर हो सकती है. मेरी तरफ़ से हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए. सादर.

Comment by Ravi Shukla on January 26, 2019 at 9:43pm

आदरणीय लक्ष्मण जी इशारो इशारो में कहीं गई ग़ज़ल का स्वागत है बहुत-बहुत मुबारकबाद

Comment by Samar kabeer on January 24, 2019 at 10:59pm

जनाब लक्ष्मण धामी 'मुसाफ़िर' जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।

उनके वतन से थी अधिक कुर्सी निगाह में
दूश्मन को इसके वास्ते सहचर किया गया'

इस शैर का भाव समझ नहीं पाया ।

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