पूर्ण विराम :
ओल्ड हो जाता है जब इंसान
ऐज हो जाती है लहूलुहान अपने ही खून के रिश्तों से
होम में जल जाते हैं सारे कोख के रिश्ते
बदल जाता है
एक घर
जब
ढाँचा चार दीवारों का
पुराना ज़िस्म
जब
पुराना सामान हो जाता है
वो
ओल्ड ऐज होम का
सामान हो जाता है
अपनों के हाथों पड़ी खरोंचों के
झुर्रीदार चेहरे
मृत संवेदनाओं की
कंटीली झाड़ियों के साथ
शेष जीवन व्यतीत करने वालों के लिए
अंतिम सोपान हो जाता है
बिना कांधों के देह चलती है
आत्मा का प्रस्थान हो जाता है
ओल्ड ऐज होम
बेबस
जीवित कंकाल से जिस्मों का गोदाम हो जाता है
मरघट से पहले
ओल्ड ऐज होम
हर दुनियावी रिश्ते का
पूर्ण विराम हो जाता है
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आदरणीय सुरेन्द्र नाथ सिंह जी सृजन पर आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभार। कोई खास वजह नहीं है बस ओल्ड एज होम को उसी के शब्दों में परिभाषित करने , उसमें निहित दर्द उन्हीं शब्दों को जोड़ते हुए उजागर करना कुछ ऐसा ही मन में विचार आया तो सृजन कर दिया। सृजन को समय देने का दिल से आभार।
आदरणीय समर कबीर साहिब, आदाब , सृजन पर आपकी आत्मीय प्रशंसा का तहे दिल से शुक्रिया।
आदरणीया बबितागुप्ता जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार।
आद0 सुशील सरना जी सादर अभिवादन। बढ़िया रचना लिखी आपने। बधाई स्वीकार कीजिए। एक प्रश्न मन मे आ रहा था। आपने ओल्ड, आगे जैसे आंग्ल भाषा के शब्द क्यो लिए जबकि हिंदी में इनके पर्याय उपलब्ध थे। सादर
जनाब सुशील सरना जी आदाब,अच्छी कविता लिखी आपने,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
आखिरी दो पंकतियाँ ,जीवन की सच्चाई दर्शाती बेहतरीन रचना के लिए बधाई स्वीकार कीजिएगा आदरणीय सुशील सरजी।
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