आज बचवा चाचा बहुत उदास दरवाजे पर बैठे थे. वैसे तो उदास उनका पूरा गांव ही हो गया था, अधिकांश नौजवान शहरों के बिजबिजाते भीड़ का हिस्सा बनने चले गए थे. कुछ जो बचे थे वह गांव में अक्सर रात को ही आते थे, दिन में तो उनका समय देसी शराब के ठेके या सिनेमा हाल पर ही बीतता था. हर घर में इक्का दुक्का बुजुर्ग ही बचे थे जो दिन को किसी तरह काट रहे थे. जितना होता एक दूसरे से बात करते या अपने अपने रोग को लेकर खटिया पर पड़े रहते.
गांव था तो गांव के अपने सुख दुःख भी थे. सबसे ज्यादा झगड़ा तो खेतों को लेकर ही हुआ करता था, वह खेत जो आजकल ठीक से बुवाई और जुताई को भी तरस रहे थे. अब तो खेती करने के लिए लोग ही नहीं बचे थे, बस अधिया या बटाई से जो मिल जाता, ठीक था. बचवा चाचा का भी खेतों को लेकर कई पट्टीदारों से मुकदमा चलता था और अब तो सिर्फ तारीख ही पता चलती थी, फैसले की आस तो दोनों ही पक्ष छोड़ चुके थे.
पड़ोसी दुक्खू से उनके उसी खेत का मुकदमा था जिसे वह किसी भी हाल में छोड़ना नहीं चाहते थे. केस पहले लोअर कोर्ट में कई साल चला फिर अब वह हाई कोर्ट में चल रहा था. कब फैसला आएगा, दोनों को पता नहीं था लेकिन समय के साथ उनकी दुक्खू से दुश्मनी कुछ कम जरूर हो गयी थी. कल रात दुक्खू बीमारी से चल बसे और अब शायद उसके लड़के मुकदमा नहीं लड़ें तो बचवा चाचा की जीत पक्की ही थी. लेकिन इस बात पर भी बचवा चाचा खुश नहीं थे और जब उनसे उनकी उदासी की वजह पूछी गयी तो उन्होंने गहरी सांस लेते हुए जवाब दिया "दुश्मनी ही सही, एक रिश्ता तो था ही दुक्खू से. कम से कम एक वजह तो थी जिसके चलते उससे बात चीत कभी कभी हो जाती थी, अब तो वह वजह भी ख़त्म हो गयी".
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
इस विस्तृत टिप्पणी के लिए बहुत बहुत आभार आ जवाहर लाल सिंह साहब
"दुश्मनी ही सही, एक रिश्ता तो था ही दुक्खू से. कम से कम एक वजह तो थी जिसके चलते उससे बात चीत कभी कभी हो जाती थी, अब तो वह वजह भी ख़त्म हो गयी"
बहुत ही सही तथ्य को सही तरीके से रक्खा आपने, आदरणीय विनय कुमार जी!
सुन्दर और सुगठित लघुकथा के लिए बधाई स्वीकारें!
इस प्रतिक्रिया के लिए बहुत बहुत आभार आ मुहतरम सुरेन्द्र नाथ सिंह 'कुशक्षत्रप' साहब
बहुत बहुत आभार आ मुहतरम समर कबीर साहब
आद0 विनय कुमार जी सादर अभिवादन। बढ़िया मार्मिक और काफी हद तक प्रभावी लघुकथा लिखी आपने, इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार कीजिये।
जनाब विनय कुमार जी आदाब,अच्छी लघुकथा लिखी आपने,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online