कल से ही खबर आ रही थी कि क्षेत्र में कुछ संदिग्ध लोग देखे गए हैं और रात में चौकसी बढ़ा दी गयी थी. हमेशा की तरह रमेश और रोशन एक साथ ही नाईट ड्यूटी पर थे. जैसे जैसे रात आगे बढ़ रही थी, चारो तरफ अँधेरा कुछ यूँ गहरा रहा था मानो इस रात की सुबह होगी ही नहीं. अचानक एक खटका हुआ और रोशन ने अपनी राइफल आवाज़ की तरफ तान दी. कुछ मिनट तक सन्नाटा रहा और उनको लग गया कि कोई खतरा नहीं है.
"तू तो निरा डरपोक ही है रोशन, जरा सी आहट हुई नहीं कि घबरा जाता है", रमेश ने उसे छेड़ते हुए कहा.
"अच्छा तो पंडित, तू बहुत बहादुर है ना, फिर उस दिन गोली चलने पर घबरा क्यों गया था", रोशन ने जवाबी हमला किया.
फिर दोनों ही हँसते हुए सीधे खड़े हो गए, दोनों ही एक दूसरे को छेड़ते रहते थे. जानते तो दोनों ही थे कि मौत से उनको कतई डर नहीं लगता.
"अच्छा ये बता रोशन, अगर तू यहाँ शहीद हो गया तो तुझे वो जन्नत में हूरें मिलेंगी कि नहीं ? मैंने तो सुना है कि हूरें सिर्फ काफिरों को मारने के बाद ही मिलती हैं, यहाँ तो सामने वाला शायद ही काफिर हो", रमेश ने बात तो मजाक में ही कही थी लेकिन रोशन गंभीर हो गया.
"देख पंडित, ये हूरों वाली बातें सिर्फ बेवकूफ बनाने के लिए और बहकाने के लिए की जाती हैं. असली सुकून और जन्नत तो वतन की सेवा में शहीद होने के बाद ही मिलेगा. लेकिन हमारी कौम की परेशानी तू नहीं समझेगा, हर कदम पर हमको देशभक्ति का इम्तहान देना पड़ता है", रोशन ने राइफल को सहलाते हुए कहा.
"अरे तू तो सचमुच गंभीर हो गया, मैं तो बस तुझे छेड़ रहा था. लेकिन इतना जरूर कहूंगा कि अगर कोई गोली हमारी तरफ आयी भी तो पहले मुझे लगेगी, उसके बाद ही तुझे छू पाएगी", रमेश ने रोशन का कन्धा थपथपा दिया.
उसी पल सामने से एक साया अँधेरे में कौंधा, रोशन को आभास हो गया कि कोई है. बिना कोई वक़्त गंवाए वह आगे बढ़ा और रमेश के आगे आते हुए उसने राइफल उठायी. सामने से एक गोली निकली और वह रोशन का सीना चीरते हुए निकल गयी. लेकिन गिरते गिरते भी रोशन ने सामने वाले को ढेर कर दिया.
रमेश ने सामने गिरे रोशन को उठाया, उसकी साँसे चल रही थीं. वह अभी कुछ बोलता उससे पहले ही रोशन ने लड़खड़ाते शब्दों में कहा "पंडित, मैं जन्नत में जा रहा हूँ, अब हूरें मिलीं तो गम नहीं होगा". कुछ ही पल में रमेश के सामने दो शरीर पड़े थे, एक जो सचमुच जन्नत जा चुका था और दूसरा जहन्नुम.
मौलिक एवम अप्रकाशित
Comment
इस टिप्पणी के लिए बहुत बहुत आभार आ मुहतरम समर कबीर साहब
जनाब विनय कुमार जी आदाब,अच्छी लघुकथा लिखी आपने,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
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