चलो मुद्दों की बात करते हैं
वही मुद्दे जिनसे वो डरते हैं
वादे जितने भी उनको करने हों
बेहिचक वो तो किया करते हैं
बात जो पूछ लो गरीबों की
वो अमीरों की बात करते हैं
आपने प्रश्न उनसे जो पूछे
देशद्रोही करार करते हैं
है कहाँ रोजगार गर पूछो
बैंड बाजे की बात करते हैं
क्या किसानों की करेंगे ये मदद
सोना, आलू से पैदा करते हैं
इनकी नज़रों में जनता उल्लू है
उल्लू ये सीधा किया करते हैं
विकास क्या करेंगे ये सबका
अपनी जेबों को भरा करते हैं
छोड़ के हस्पताल और सड़क
मंदिर मस्जिद की बात करते हैं
हर तरफ इंडिया तो डिजिटल है
राज ये अंगूठे से करते हैं
अपने फायदे के लिए देश के राज
लीक ये रोज किया करते हैं
मौलिक एवम अप्रकाशित
Comment
इस टिप्पणी के लिए बहुत बहुत आभार आ सुरेन्द्र नाथ सिंह 'कुशक्षत्रप' जी
आद0 विनय जी अच्छी कविता लिखी आपने। बधाई स्वीकार कीजिये
इस टिप्पणी के लिए बहुत बहुत आभार आ मुहतरम समर कबीर साहब
इस टिप्पणी के लिए बहुत बहुत आभार आ सुशील सरना जी
जनाब विनय कुमार जी आदाब,अच्छी कविता लिखी आपने,बधाई स्वीकार करें ।
वाह आदरणीय एक यथार्थ को बहुत ही ख़ूबसूरती से आपने उजागर किया है। इस रचना के लिए दिल से बधाई।
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