दोस्त क्यूँ होते हैं, इस सवाल का जवाब जिंदगी के अलग अलग समय में अलग अलग हो सकता है. लेकिन एक जवाब तो कामन है कि जो आपके लिए हमेशा खड़ा रहे, आपकी हर मुसीबत में काम आए, वही असली दोस्त होता है. बहरहाल अधिकांश दोस्त ऐसे होते भी हैं, बस कुछेक अपवाद को छोड़कर.
कुछ लोगों का यह भी मानना है कि अगर सियापा ही न करें तो दोस्त कैसे, ये अलग बात है कि आप माने या न माने. अमूमन ऐसे दोस्त तो जिंदगी के शुरूआती दिनों में ही मिलते हैं जब आपके ऊपर किसी किस्म के सियापे का कोई असर नहीं पड़े. और मुझे तो बिलकुल नहीं लगता था कि ऐसे दोस्त एक समय के बाद मिलते भी हैं, मतलब तब, जब आप जीवन के पचास बसंत पार कर चुके हों. लेकिन अब मानना पड़ रहा है और उसकी वाजिब वजह भी है.
शादी के पच्चीस साल बीतने के बाद अगर घरवाली कुछ दिनों के लिए बाहर गई हो तो यह समय आपके लिए सबसे उम्दा होता है. आप चाहें तो इससे इत्तेफ़ाक़ नहीं भी रख सकते हैं लेकिन आपका जमीर भी यह जानता है कि आप गलत हैं. अब ऐसे में तो यह लाज़मी है कि आप चाहे जितना भी खुश हों, रोज सुबह शाम वीडियो काल पर बात करते समय आपको थोड़ा दुखी दिखने का अभिनय करना ही पड़ता है. बचपन में गलती करने के बाद आपका मासूम दिखने का सफल अभिनय यहाँ खूब काम आता है, जब आपकी माँ को दुनिया के सब लड़के बदमाश दिखते थे, एक आपके सिवा.
यह सब ठीक ठाक ही चल रहा था, रोज हम दिन भर अपने को शाबाशी देते रहते कि कल रात को कितनी बढ़िया एक्टिंग की थी. लेकिन जब आपकी शामत आनी होती है तो आ ही जाती है, या यूँ कह लीजिये कि उपरवाले से भी आपका सुख ज्यादा दिनों तक देखा नहीं जाता. बस हुआ यूँ कि हमारे एक पुराने दोस्त हमसे मिलने आफिस आए और जब हम लोग खुश होकर ठहाके लगा रहे थे तो उन्होंने हमारी हंसती हुई तस्वीर खैंच ली. दरअसल वह अपने पत्नी के साथ थे इसलिए जाहिराना तौर पर वह उतने खुश नहीं थे जितना मैं था. यह सब इतने चुपचाप हुआ कि मुझे भनक तक नहीं लगी कि उन्होंने मेरी हंसती हुई तस्वीर किसी और प्रयोजन के लिए खैंच ली थी. यहाँ तक तो ठीक था लेकिन कुछ ही घंटों में उनके द्वारा निहायत ही बेरहमी से वह तस्वीर इस कैप्सन के साथ कि "कितना खुश है अकेले में" घरवाली को भेज दी गई. तस्वीर भेजने के पहले या बाद में भी उन्होंने मुझे इसके बारे में बताना भी गंवारा नहीं समझा. शाम होते होते हमने अपने अभिनय की तयारी कर ली थी और मैं अभी वीडियो काल करूँ उसके पहले ही उधर से फोन आ गया. अपने बॉस के फोन आने से भी संभवतः इतनी घबराहट नहीं होती है जितनी घरवाली के अचानक आये फोन से. मैंने यथासंभव अपनी घबराहट को दबाते हुए बेहद मुलायम शब्दों में इतना ही कहा था "कैसी हैं बेगम, आपको बहुत मिस कर रहा हूँ", कि उन्होंने वह फोटो भेजी और कहा "अभी एक आपकी दुःख भरी फोटो भेजी है, आपके दोस्त ने आज भेजी थी. अब मैं सोच रही हूँ कि आपको और ज्यादा मिस करने का मौका नहीं दूँ", और फोन काट दिया. मैंने घबराते हुए फोन में फोटो देखा, कम्बख्त वही फोटो थी जिसमें मेरी खुशियां मेरे चेहरे पर समां नहीं रही थी".
अब इस वाकये का परिणाम यह हुआ है कि अब उधर से तत्काल का टिकट लेकर बेगम की तुरंत वापसी की खबर आ गई है. बस आज से एक नयी कसम खायी है कि दोस्त चाहे कितना भी अच्छा हो, उससे संभल कर ही रहना है.
मौलिक एवम अप्रकाशित
Comment
बहुत बहुत आभार आ मुहतरम समर कबीर साहब
जनाब विनय कुमार जी आदाब,अच्छी रचना हुई है,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
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