रोशनी के सामने ये तीरगी क्या चीज़ है
वक़्त की आंधी के आगे आदमी क्या चीज़ है
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जब थपेड़े ग़म के खाता है जहाँ में आदमी
तब उसे मालूम होता है ख़ुशी क्या चीज़ है
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एक बच्चे की कोई भी आरज़ू पूरी हो जब
ग़ौर से फिर देखिये चेहरा हँसी क्या चीज़ है
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ग़ुरबतों से लड़ के जिसने ख़ुद बनाया हो मक़ाम
बस वही तो जानता है मुफ़लिसी क्या चीज़ है
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शह्र में तो प्यास का अहसास क्या होगा जनाब
गांव में जाकर के देखो तिश्नगी क्या चीज़ है
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जब तिरंगे में विदाई पुत्र को देता पिता
उससे पूछो आँख की होती नमी क्या चीज़ है
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जह्र पी लेती है जो होकर दिवानी प्यार में
सिर्फ मीरा ने ही जाना बंदगी क्या चीज़ है
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मुब्तला है जिस्म के धंधे में उससे पूछिए
बेबसी क्या चीज़ है और खीरगी क्या चीज़ है
***
आज तो है घर बड़ा रहता जहाँ पर है 'तुरंत '
पर उसे मालूम है ये झोंपड़ी क्या चीज़ है
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गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत' बीकानेरी
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(मौलिक एवं अप्रकाशित )
Comment
दिगंबर नासवा साहेब ,आदाब |
बहुत खूब ...
अच्छे खनकदार शेर हैं कुछ तो ... वाह वाह निकल ही जाती है ...
बहुत बधाई ....
आदरणीय Samar kabeer साहेब ,आदाब | आपकी सराहना के साथ साथ इस्लाह ने न केवल मेरा हौसला बढ़ाया है बल्कि मेरी कमियों को ठीक से समझने में भी मदद की है | मुझे आपकी शरण में बहुत पहले आ जाना चाहिए था | आप निस्वार्थ जो साहित्य की सेवा कर रहे हैं एवं भटके हुओं को राह दिखा रहे हैं ,उसके लिए आपका शुक्रगुज़ार हूँ | आप द्वारा सुझाये गए सभी संशोधन सटीक एवं कलाम में चार चाँद लगाने वाले होते हैं | आपके इस जज़्बे को सलाम |
जनाब गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत' जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।
'जब थपेड़े ग़म के खाकर सुर्ख़रू हो आदमी'
इस मिसरे में 'सुर्ख़रु' शब्द मुनासिब नहीं,मिसरा यूँ कर सकते हैं:-
'जब थपेड़े ग़म के खाता है जहाँ में आदमी'
'इक वही बस जानता है मुफ़लिसी क्या चीज़ है'
इस मिसरे को यूँ करना उचित होगा:-
'बस वही तो जानता है मुफ़लिसी क्या चीज़ है'
'आप तो बस तिश्नगी का ढूंढते हल मयकशी'
इस मिसरे को यूँ करना उचित होगा:-
'शह्र में तो प्यास का अहसास क्या होगा जनाब'
'पर उसे मालूम होती झोंपड़ी क्या चीज़ है'
इस मिसरे को यूँ करना उचित होगा:-
'पर उसे मालूम है ये झोंपड़ी क्या चीज़ है'
बाक़ी शुभ शुभ ।
आवश्यक सूचना:-
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