For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

भले नीम जां मेरा जिस्म हो , अभी रूह इसमें सवार है (२२ )

भले नीम जां मेरा जिस्म हो  अभी रूह इसमें सवार है 
अभी जा क़ज़ा किसी और दर मेरी साँस में भी क़रार  है 
***
है जवाब देती लगे नज़र अभी है ख़याल की रोशनी 
रहे ज़ीस्त मेरी रवाँ दवाँ  ये तुम्हीं पे दार-ओ-मदार है 
***
जो पिलाई तूने थी चश्म से कभी मय जो बन के थी साक़िया
न उतर सका न उतार पर  चढ़ा अब तलक वो ख़ुमार है 
***
मिले बार बार, जुदा हुए मिले फिर से, फिर से जुदा हुए 
कि जनम जनम से लगी हुई मुझे खू तेरी मेरे यार है 
***
तुझे सौंप दी है ये ज़िंदगी नहीं इख़्तियार बचा मिरा 
मुझे ख़ौफ़-ए- दुनिया हो क्यों भला मेरे साथ जो तेरा प्यार है 
***
बड़े  तंग करते थे  रोज-ओ-शब ये ग़मों के हादिसे ज़ीस्त में 
ये तेरे क़दम का है मो'जिज़ा उसी दिन से ग़म भी फ़रार है 
***
ये  'तुरंत ' फ़ख़्र  की बात है जो नज़ीरें  मिलती हैं  अब तलक  
जो शहीद इश्क़ में हो गए  मेरा नाम उन में शुमार है 
***
गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत' बीकानेरी .
(मौलिक एवं अप्रकाशित )
***
शब्दार्थ- नीम जां=मृतप्रायः , करार=स्थिरता ,शिकन=झुर्रियां 
लैल-ओ-नहार = रात और दिन, नक़्श-ओ-निगार= बेल-बूटे, फूल-पत्तियाँ, रंग-ए-बहार= बसंत ऋतू की छटा  , रवाँ दवाँ=चलती फिरती,दार-ओ-मदार=निर्भरता ,खू=आदत, इख़्तियार =नियंत्रण ,रोज-ओ-शब=दिन और रात, मो'जिज़ा=चमत्कार ,फ़ख़्र=गर्व ,शुमार (शामिल ),

**

Views: 575

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Samar kabeer on February 6, 2019 at 10:43pm

जी,यही बहतर है ।

Comment by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on February 6, 2019 at 6:27pm

आदरणीय Samar kabeer साहेब ,बहुत बहुत आभार | ये है और हैं का चक्कर तो दिमाग में आया ही नहीं | ये दोनों ही शेर हटा रहा हूँ | 

Comment by Samar kabeer on February 6, 2019 at 11:12am

'तुझे हो न हो मुझे वस्ल के सभी याद लैल-ओ-नहार है'

'खुदे रुख़ पे मेरे बहुत हसीं ये शिकन के नक़्श-ओ-निगार है'

इन दोनों मिसरों में 'है' कि जगह "हैं" आएगा,क्योंकि 'लैल-ओ-नहार' और 'नक़्श-ओ-निगार' बहुवचन हैं ।

'बड़े तंग करते थे रोज-ओ-शब ये ग़मों के हादिसे ज़ीस्त में'

ये मिसरा ठीक है ।

'ये 'तुरंत ' फ़ख़्र की बात है जो नज़ीरें मिलती है अब तलक'

इस मिसरे में 'है' को "हैं" कर लें,ठीक हो जाएगा ।

Comment by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on February 5, 2019 at 10:29pm

आदरणीय  सुरेन्द्र नाथ सिंह 'कुशक्षत्रप'  जी ,नमस्कार | 

बे'पनाह, मुहब्बतों, नवाज़िशों का दिल से बे'हद शुक्रिया ! शाद-औ-आबाद रहें| 

आदरणीय Samar kabeer  साहेब ने जो सुझाव दिए हैं उसके अनुसार संशोधन कर दिए हैं | 

Comment by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on February 5, 2019 at 10:26pm
मोहतरम Samar kabeer साहेब , आदाब | आपकी हौसला आफजाई के लिए शुक्रगुज़ार हूँ | आपने जो सुझाव दिए हैं उन्हें ठीक करने का प्रयास किया है |
'है शिकन का दरिया शबाब पर, हसीं रुख पे नक़्श-ओ-निगार है' =खुदे रुख़ पे मेरे बहुत हसीं ये शिकन के नक़्श-ओ-निगार है
**
'तुझे हो न हो मुझे वस्ल की ,सभी याद लैल-ओ-नहार है'=तुझे हो न हो मुझे वस्ल के सभी याद लैल-ओ-नहार है
**
'बड़ी तंग करती थी रोज-ओ-शब,मुझे ग़म भरी ये मुसीबतें'=बड़े तंग करते थे रोज-ओ-शब ये ग़मों के हादिसे ज़ीस्त में
**
'मुझे फ़ख़्र है कि तरीख में ,ज़रा गौर करना सभी 'तुरंत''=ये 'तुरंत ' फ़ख़्र की बात है जो नज़ीरें मिलती है अब तलक
जो शहीद इश्क़ में हो गए मेरा नाम उन में शुमार है
***
जब भी समय मिले कृपया बताएं क्या कुछ ठीक करने में कामयाब हुआ या नहीं ?
Comment by नाथ सोनांचली on February 5, 2019 at 5:40pm

आद0 गिरधारी सिंह गहलोत जी सादर अभिवादन। बढ़िया ग़ज़ल कही आपने, बधाई स्वीकार कीजिये। आद0 समर साहब ने कुछ सुझाव दिया है जो ग़ज़ल के सुधार में अत्यंत सहयोग करेगा। सादर

Comment by Samar kabeer on February 5, 2019 at 2:23pm

जनाब गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत' जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।

कुछ बातें आपके संज्ञान में लाना चाहूँगा ।

'है शिकन का दरिया शबाब पर, हसीं रुख पे नक़्श-ओ-निगार है'

इस मिसरे में 'नक़्श-ओ-निगार' बहुवचन है ।

'तुझे हो न हो मुझे वस्ल की ,सभी याद लैल-ओ-नहार है'

इस मिसरे में 'लैल-ओ-नहार' बहुवचन है ।

'बड़ी तंग करती थी रोज-ओ-शब,मुझे ग़म भरी ये मुसीबतें'

इस मिसरे में 'रोज़-ओ-शब' बहुवचन है ।

'मुझे फ़ख़्र है कि तरीख में ,ज़रा गौर करना सभी 'तुरंत''

इस मिसरे में 'तरीख' ग़लत है,सहीह शब्द "तारीख़" है, ग़ौर करें ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Aazi Tamaam commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post सुखों को तराजू में मत तोल सिक्के-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"एकदम अलग अंदाज़ में धामी सर कमाल की रचना हुई है बहुत ख़ूब बधाई बस महल को तिजोरी रहा खोल सिक्के लाइन…"
8 minutes ago
surender insan posted a blog post

जो समझता रहा कि है रब वो।

2122 1212 221देख लो महज़ ख़ाक है अब वो। जो समझता रहा कि है रब वो।।2हो जरूरत तो खोलता लब वो। बात करता…See More
9 hours ago
surender insan commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। अलग ही रदीफ़ पर शानदार मतले के साथ बेहतरीन गजल हुई है।  बधाई…"
10 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . . .
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन के भावों को मान देने तथा अपने अमूल्य सुझाव से मार्गदर्शन के लिए हार्दिक…"
11 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . . .
"गंगा-स्नान की मूल अवधारणा को सस्वर करती कुण्डलिया छंद में निबद्ध रचना के लिए हार्दिक बधाई, आदरणीय…"
13 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

कुंडलिया. . . .

 धोते -धोते पाप को, थकी गंग की धार । कैसे होगा जीव का, इस जग में उद्धार । इस जग में उद्धार , धर्म…See More
16 hours ago
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ सत्तरवाँ आयोजन है।.…See More
yesterday
Gajendra shrotriya replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-177
"सादर प्रणाम🙏 आदरणीय चेतन प्रकाश जी ! अच्छे दोहों के साथ आयोजन में सहभागी बने हैं आप।बहुत बधाई।"
Sunday
Gajendra shrotriya replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-177
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी ! सादर अभिवादन 🙏 बहुत ही अच्छे और सारगर्भित दोहे कहे आपने।  // संकट में…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-177
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर सुंदर दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Saturday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-177
"राखी     का    त्योहार    है, प्रेम - पर्व …"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-177
"दोहे- ******* अनुपम है जग में बहुत, राखी का त्यौहार कच्चे  धागे  जब  बनें, …"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service