(1212 1122 1212 22 )
हयात में तू मुहब्बत की आन रहने दे
कतर न पंख ये दिल की उड़ान रहने दे
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न तोड़ सिलसिला तू इस तरह मुहब्बत का
वफ़ा का मुझको जरा सा गुमान रहने दे
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न खोल राज़ सभी हो न मेरी रुसवाई
कुछ एक राज़ सनम दरमियान रहने दे
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मैं जानता हूँ हक़ीक़त में प्यार है मुझसे
क़फ़स में क़ैद तेरे मेरी जान रहने दे
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तमाम कोशिशें कर ले मिटा न पायेगा
वफ़ा के पाक मेरे कुछ निशान रहने दे
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अना के फेर में इतना न संगदिल बन जा
जमीं पे पा सरों पे आसमान रहने दे
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हर एक आज बशर की यही दिली हसरत
मिले दवा जो क़ज़ा तक जवान रहने दे
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उधार ले के दिखाए चमक दमक अपनी
जहाँ के सामने झूठी ये शान रहने दे
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दबा न इतना मुझे सच न कह सकूं मैं 'तुरंत'
खुदा का वास्ता मुँह में जुबान रहने दे
***
गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत' बीकानेरी |
(मौलिक एवं अप्रकाशित )
Comment
आदरणीय Samar kabeer साहेब |
आपकी पुरखुलूस हौसला अफ़ज़ाई का दिल से शुक्रग़ुज़ार हूँ . नवाज़िश जनाब!
जनाब गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत' जी आदाब,ग़ज़ल का अच्छा प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।
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