(१२२२ १२२२ १२२२ १२२२ )
कभी तन्हा अगर बैठें तो ख़ुद से गुफ़्तगू कीजे
खुदा मौजूद है अंदर उसी की जुस्तजू कीजे
***
नुज़ूमी चाल क़िस्मत की क्या हमारी बताएगा
पढ़ा किसने मुक़द्दर है भला क्या आरजू कीजे
***
कहाँ तक नफ़रतों का ज़ुल्म सहते जायेंगे यारों
मुहब्बत के शरर से रोशनी अब चार सू कीजे
***
तभी करना मुहब्बत जब निभा पाओ सभी क़समें
नहीं हो इसकी रुसवाई हमेशा सुर्खरू कीजे
***
कभी भागें नहीं आफ़ात से कैसी भी मुश्किल हो
रहें साबित क़दम ख़ुद को ग़मों के रूबरू कीजै
***
बने पहचान आदम की सलामत है अगर इज़्ज़त
किसी सूरत भी मत नीलाम अपनी आबरू कीजे
***
ख़ुशी रक्खे क़दम इस बार घर में रोक लेना सब
'तुरंत' अच्छा यही अब है ख़ुशी को पालतू कीजे
***
गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत' बीकानेरी
(मौलिक और अप्रकाशित )
Comment
भाई Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" जी ,आपकी सराहना के लिए ह्रदय तल से आभार | आदरणीय समर कबीर साहेब के सुझाये सभी संसोधन कर दिए है |
आदरणीय गिरधारी सर, अच्छे भावों वाली एक ग़ज़ल पेश करने के लिए दिली मुबारकवाद....शिल्पगत दोष पर आदरणीय बाऊजी समर कबीर साहब ने बात कही है...सादर
आदरणीय Samar kabeer साहेब ,आदाब | आपकी सराहना के लिए सादर आभार | आपके सभी संशोधन आदरपूर्वक स्वीकार्य है |
जनाब गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत' जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।
कुछ बातें आपके संज्ञान में लाना चाहूँगा ।
'खुदा मौजूद जो अंदर उसी की जुस्तजू कीजे'
इस मिसरे में 'जो' की जगह "है" करना उचित होगा ।
' नुज़ूमी क्या बताएगा हमारी चाल क़िस्मत की '
इस मिसरे में शिल्प कमज़ोर है, यूँ कर लें तो गेयता भी बढ़ जाएगी:-
'नजूमी चाल क़िस्मत की हमारी क्या बताएगा'
'हमारी जान और पहचान से आगे बढ़ा दो गाम
ज़रा अब 'आप' को 'तुम' कर फिर उसको जल्द 'तू' कीजे '
ये शैर मुझे भर्ती का लगा ।
'मुहब्बत की शरर से रोशनी अब चार सू कीजे'
इस मिसरे में 'शरर' शब्द पुल्लिंग है,इसलिए 'की' को "के" कर लें ।
'तभी करना मुहब्बत गर निभा पाओ सभी क़समें'
इस मिसरे में 'गर' की जगह "जब" शब्द उचित होगा ।
' कभी भागें नहीं आफ़ात से मुश्किल मुसीबत में
मुक़ाबिल हों लड़ें ख़ुद को ग़मों के रूबरू कीजे'
इस शैर को यूँ कर लें तो मफ़हूम भी स्पष्ट होगा,गेयता भी बढ़ेगी:-
'कभी भागें नहीं आफ़ात से कैसी भी मुश्किल हो
रहें साबित क़दम ख़ुद को ग़मों के रूबरू कीजै'
'किसी सूरत नहीं नीलाम अपनी आबरू कीजे '
इस मिसरे को यूँ कर लें,गेयता बढ़ जाएगी:-
'किसी सूरत भी मत नीलाम अपनी आबरू कीजै'
आदरणीय Dayaram Methani जी ,
तह-ए-दिल से शुक्रिया क़बूल करें खादिम का साहेब . ज़र्रा -नवाज़ी है आपकी |
कभी तन्हा अगर बैठें तो ख़ुद से गुफ़्तगू कीजे
खुदा मौजूद जो अंदर उसी की जुस्तजू कीजे .......बहुत सुंदर आगाज़।
***
नुज़ूमी क्या बताएगा हमारी चाल क़िस्मत की
पढ़ा किसने मुक़द्दर है भला क्या आरजू कीजे .......हकीकत बयान करता शेर।
आदरणीय गिरधारी सिंह जी, बहुत सुंदर गज़ल हुई है। बहुत बहुत बधाई।
आदरणीय दिगंबर नासवा जी ,आपकी स्नेहिल सराहना के लिए ह्रदय तल से आभार |
बहुत कमल के शेर हुए हैं गिरधारी जी ...
ख़ुशी रक्खे क़दम इस बार घर में रोक लेना सब
'तुरंत' अच्छा यही अब है ख़ुशी को पालतू कीजे .... खूबसूरत शेर है इस ग़ज़ल का ...
दिली दाद कबूल करें इस गज़ल की ...
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