For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

22 22 22 22 22 22 22 2

हर लम्हा इक चोट नई थी मुझ पर क्या गुजरी होगी
मेरी हस्ती टूट रही थी मुझ पर क्या गुजरी होगी

मेरे पाँव में इक कांटे से तुझको कितना दर्द हुआ
जब तू शोलों से गुजरी थी मुझ पर क्या गुजरी होगी

जिन सपनों को हमने मालिक के हाथों में सौंपा था
उन सपनों में आग लगी थी मुझ पर क्या गुजरी होगी

सारे रस्ते आकर के जिस रस्ते पर मिल जाते हैं
उस रस्ते पर पीर घनी थी मुझ पर क्या गुजरी होगी

छोड़ के सारी दुनियादारी कागज कलम उठाया था
लफ्ज़ों में तासीर नहीं थी मुझ पर क्या गुजरी होगी

झेल नहीं पाया मैं यारो तकलीफ़ों की आंधी को
लोगों को उम्मीद यही थी मुझ पर क्या गुजरी होगी

मौलिक और अप्रकाशित

Views: 477

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on February 12, 2019 at 7:36am

आ. मनोज अहसास जी, अच्छी ग़ज़ल हुई है, मोहतरम समर कबीर साहिब की इस्लाह से और निखार आ गया है। सादर बधाई आपको

Comment by मनोज अहसास on February 8, 2019 at 10:13pm

आदरणीय समर कबीर साहब सादर प्रणाम

ये हम लोगों का सौभाग्य है कि हम आपकी देख रेख में हैं आपके सामने आकर ग़ज़ल बोलने लगती है खुद ब खुद उसके दोष दूर हो जाते हैं

आपका सादर आभार

Comment by मनोज अहसास on February 8, 2019 at 5:29pm

आदरणीय समर कबीर साहब सादर प्रणाम

ये हम लोगों का सौभाग्य है कि हम आपकी देख रेख में हैं आपके सामने आकर ग़ज़ल बोलने लगती है खुद ब खुद उसके दोष दूर हो जाते हैं

आपका सादर आभार

Comment by मनोज अहसास on February 8, 2019 at 5:28pm

आदरणीय रक्षिता जी सादर आभार

Comment by Samar kabeer on February 8, 2019 at 4:09pm

जनाब मनोज अहसास जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।

'मेरे पाँव में इक कांटे से तुझको कितना दर्द हुआ'

इस मिसरे में ऐब-ए-तनाफ़ुर देखें,मिसरा यूँ कर सकते हैं:-

'देख के मेरे पाँव में काँटा तुझको कितना दर्द हुआ'

'जिन सपनों को हमने मालिक के हाथों में सौंपा था '

इस मिसरे में ऐब-ए-तनाफ़ुर देखें,'मालिक' की जगह "मौला" कर सकते हैं ।

'सारे रस्ते आकर के जिस रस्ते पर मिल जाते हैं'

इस मिसरे में 'आकर' शब्द के साथ 'के'उचित नहीं, यूँ कर सकते हैं:-

'जिस रस्ते पर आकर ये सारे रस्ते मिल जाते हैं'

'लफ्ज़ों में तासीर नहीं थी मुझ पर क्या गुजरी होगी'

इस मिसरे में 'लफ़्ज़' का बहुवचन "अल्फ़ाज़" होता है,'लफ़्ज़ों' की जगह "शब्दों" कर लें ।

Comment by रक्षिता सिंह on February 8, 2019 at 2:34pm

 आदरणीय मनोज जी नमस्कार 

बहुत सुंदर पंक्तियाँ, हार्दिक बधाई स्वीकार करें।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Chetan Prakash commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post लौटा सफ़र से आज ही, अपना ज़मीर है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"बहुत खूबसूरत ग़ज़ल हुई,  भाई लक्ष्मण सिंह 'मुसाफिर' साहब! हार्दिक बधाई आपको !"
1 hour ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय मिथिलेश भाई, रचनाओं पर आपकी आमद रचनाकर्म के प्रति आश्वस्त करती है.  लिखा-कहा समीचीन और…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय सौरभ सर, गाली की रदीफ और ये काफिया। क्या ही खूब ग़ज़ल कही है। इस शानदार प्रस्तुति हेतु…"
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .इसरार

दोहा पंचक. . . .  इसरारलब से लब का फासला, दिल को नहीं कबूल ।उल्फत में चलते नहीं, अश्कों भरे उसूल…See More
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सौरभ सर, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। आयोजन में सहभागिता को प्राथमिकता देते…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरना जी इस भावपूर्ण प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। प्रदत्त विषय को सार्थक करती बहुत…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, प्रदत्त विषय अनुरूप इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। गीत के स्थायी…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरनाजी, आपकी भाव-विह्वल करती प्रस्तुति ने नम कर दिया. यह सच है, संततियों की अस्मिता…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आधुनिक जीवन के परिप्रेक्ष्य में माता के दायित्व और उसके ममत्व का बखान प्रस्तुत रचना में ऊभर करा…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय मिथिलेश भाई, पटल के आयोजनों में आपकी शारद सहभागिता सदा ही प्रभावी हुआ करती…"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ   .... बताओ नतुम कहाँ होमाँ दीवारों मेंस्याह रातों मेंअकेली बातों मेंआंसूओं…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service