For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

प्यार का दंश या फर्ज

प्यार का दंश या फर्ज
तुलसीताई के स्वर्गवासी होने की खबर लगते ही,अड़ोसी-पड़ोसी,नाते-रिश्तेदारों का जमघट लग गया,सभी के शोकसंतप्त चेहरे म्रत्युशैय्या पर सोलह श्रंगार किए लाल साड़ी मे लिपटी,चेहरे ढका हुआ था,पास जाकर अंतिम विदाई दे रहे थे.तभी अर्थी को कंधा देने तुलसीताई के पति,गोपीचन्दसेठ का बढ़ा हाथ,उनके बेटों द्वारा रोकने पर सभी हतप्रद रह गए.पंडितजी के आग्रह करने पर भी,अपनी माँ की अंतिम इच्छा का मान रखते हुये, ना तो कंधा लगाने दिया,ना ही दाहसंस्कार में लकड़ी.यहाँ तक कि उनके चेहरे के अंतिम दर्शन भी ना करने दिये.तेहरवी तक अंजान सदस्य बन, मूकदर्शक की तरह शामिल होते.
गोपीचन्दसेठ,प्रतिष्ठित व्यापारी,बेटो-बहुओं,नाती-पोतों वाला परिवार,सुशील,कुशल धर्मपत्नी,तुलसीताई,अपनी व्यवहार कुशलता से,प्यार से,दीवारों की एक-एक ईट को जोड़कर,सबको अपना मुरीद मना लिया.वो भी अपने भाग्य,सराहती,ईश्वरसम पति को पूजती,पर गोपीचन्द द्वारा अकस्मात दूसरे विवाह की खबर से आघात,बुत-सी बन गई.ढलती शाम का ओट में छिपा अलविदा कहता सूरज फिर कल आने का आगाह करता हैं,रोजमर्रा की तरह आने का,पर तुलसीताई के जीवन मे बीते खुशहाल दिन फिर कभी ना आए.बदलते जीवन के समीकरणों ने आनंदमयी अन्तर्मन पर दुखित परतों से उदासीन बना दिया.अनायास गोपीचन्द के सामने पड़ने पर,अपना चेहरा ढक लेती,उसांस भरे अधरों पर बुदबुदाहट दौड़ पड़ती,महिलाओं के प्रति सम्मान जताते थे,लेकिन इस तरह,महिला आश्रम दोस्तों के साथ राहत राशि जमा करने गए थे,और दोस्तों द्वारा चने के झाड़ पर चढ़ा दिया,और कर दिया निराश्रित महिला का उद्धार ,संग व्याह रचाकर.निर्मोही पति की बेवफाई से घायल पतंगा की तरह भटकता मन सांसारिक दुनियाँ से मुक्त होने को तड़प उठता.वित्रष्ण ह्रदय की धधक में पति की पश्चाताप की बूंदे रूपी स्नेहसिल शब्दों की बौछार छनक जाती.बेटों-बहुओं को भी अपनी देवीय माँ के प्रति घोर अन्याय लगा,तुलसी के साथ,सभी ने गोपीचन्द से नाता तोड़ लिया.घर के कोने में रहते,आते-जाते,पर अंजानों की तरह.
अकस्मात नियति ने दिये दुख की तपन से अन्तर्मन सुलगता,सहने के लिए बस ईश्वर का भावात्मक संबल था,अवसादभरा मन होने पर भी जीवनभर सहरदयता का भाव बनाए रखा. भगवान के समक्ष घंटो बैठी रहती,जब कभी पंडितजी के सदा सुहागिन बने रहने और अपने पति के एकपत्नीत्व का बचन स्मरण हो आता,मन कचोटता,कैसे आशीर्वाद,श्राप बन गया.वेदनामयी जीवन को देख सब तड़प उठते.और एक दिन भावहीन ह्रदय की तड़प ने याचनाभरी नेत्रों से क्रतज्ञभाव से अंतिम इच्छा निर्वाह करने का वचन लिया कि मरणोपरांत भी मेरा चेहरा अपने पिता को ना दिखाना और ना ही अर्थी को लकड़ी. सब सुनकर सन्न रह गए,पर बचन दिया.सुहागिन जैसी रहने पर,कोई पूछता तो कहती,‘बस,साथ में धर्म ही जाता हैं.’दिन-रात की घुटन की पीड़ा ने ऐसे असाधाय रोगग्रस्त ने बिस्तर पकड़ा,फिर वो शमशान घाट पर ही छूटा.
तुलसी के साथ किए अन्याय का क्षोम दिन-रात गोपीचन्द को सताता,ह्रदय की पीड़ा चेहरे पर झलकती,पर सामने दूसरी पत्नी की ज़िम्मेदारी,धर्मरीति निभाने को बेवस कर देती,हालांकि तुलसी से मेल-जोल की कोशिस की,पर उसकी निर्मोहिता,कठोरता परे धकेल देती.खैर..... ऊपर वाले के देर हैं,अंधेर नही…….दो साल भी नही हुये थे,कि ईश्वर ने दूसरी पत्नी को अपने पास बुला लिया....शायद तुलसी के साथ हुये अन्याय का न्याय मिला.लेकिन गोपीचन्द बिना किसी की परवाह किए दूसरी पत्नी को घर,सम्मान,पहचान सब दी,तसल्ली थी,कि किसी के साथ वचनों को निभा सका.
.
मौलिक व अप्रकाशित 
बबीता गुप्ता 

Views: 378

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by babitagupta on February 28, 2019 at 10:29pm

आभार समर सरजी एवं शेख सरजी।

Comment by Samar kabeer on February 27, 2019 at 2:43pm

सुंदर प्रस्तुति हेतु बधाई स्वीकार करें ।

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on February 27, 2019 at 1:09am

बढ़िया रचना हेतु हार्दिक बधाई आदरणीया बबीता गुप्ता साहिबा।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
yesterday
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
Friday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
Friday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
Thursday
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
Thursday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service