For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

अनूठा इजहार [लघु कथा ]

अनूठा इजहार

नितिशा के बाबूजी के अंतिम श्रद्धांजलि दे रहे थे,तभी अंदर से शांत मुद्रा में नितिशा की दादी,सरल चिरनिद्रा में लीन बाबूजी के पार्थवशरीर के समक्ष बैठी,हाथ मे पकड़े नए सफेद रूमाल से मुंह पौछा,फिर कान के पास जाकर जो कहा,सभी उन्हें विस्मयद्रष्टि से देखने लगे,वो सिर पर हाथ फेरते हुये कह रही थी- ‘तुम आराम से रहना,मेरी चिंता मत करना. रामायण की चौपाई सुनाई,फिर बाबूजी का मनपसंद गीत गया,और सूखीआँखें चली गई.पूरे तेरह दिन सरला अपने ही कमरे मे ही रही. गरूढ़पुराण में शामिल होने को कहते तो नकारती- ‘अब किसके लिए?’
घर के लोग ,रिश्तेदार सरला का यह अनौखा रूप देख आश्चर्यचकित तो हुये लेकिन भावविहल हुये बिना नही रहे. नितिशा के अन्तर्मन मे यही सब कौंध रहा था,सोच-सोच के परेशान थी,उसने कभी भी दादी–बाबू को कभी हँसते हुये बातें करते नहीं देखा,जब देखा,तो दोनों को लड़ते-झगड़ते.यहाँ तक की बाबूजी अपने पोते-पोती के कमरे में उठते-बैठते-सोते ,और दादी अपने पूजाघर में ही उनकी दिन-रात होती.बस,नियमित शाम को मंदिर के लिए कमरे से बाहर निकलती या फिर थोड़ा बहुत शाम की हवा खाने छत्त पर.बाबूजी से उनका अलग ही तरह का रिश्ता था.बाबूजी जब कभी थोड़ा-बहुत बीमार पड़ते तो कभी उनकी ना तो देख-रेख करती,और ना ही हाल-चाल पुछती.बाबूजी उनके कमरे आकर बैठ भी जाते या कभी कोई अपनी परेशानी सांझा करना चाहते,तो दोनों के बीच मे इतनी गहमा-गहमी शुरू हो जाती कि बेटे-बहु-बच्चे दोनों को अलग-अलग करते.एकाधबार दोनों को छोडकर शादी मे या घूमने गए,आने पर पड़ौसियों से पता चलता कि एक दिन दोनों गार्डन में बैठे चाय पी रहें थे,अचानक से चीखने की आवाजें सुन बाहर देखा तो दोनों लाल-पीले होकर एक दूसरेन की कमियों को उजागर कर अजीबो-गरीब उपाधियों से नबाज़ रहे थे.पूरी कालौनी एकत्र हो गई,काफी देर बाद मामला सुलझा.सुनकर गुस्सा भी आया,हंसी भी आई.दादी–बाबूजी के इस तरह की नौक-झौक भरे बेरूखी जीवन के बारे मे चर्चा होती तो बस बुआ दादी इतना ही कहती- ‘तेरी दादी ने बाबूजी को बहुत सहा,सरला जैसी सुलक्षणी पत्नी के तो इसे चरण धोकर पीना चाहिए,जो उसने नरक जैसे घर को स्वर्ग बना दिया,बच्चों को इज्जतदार जीवन जीने लायक बनाया.पर भाई को इसके त्याग की कद्र ना थी.वक्त रहते ना की,क्या मतलब की.खैर.......’ हम सब शांत रह जाते.
पर आज बड़ी ताई के ज़ोर देने पर जो बताया ,जानकर एहसास हुआ,ऊपर के घाव वक्त रहते भर जाते हैं,पर मन के घाव नासूर बन रिसते रहते हैं,चाहकर भी सहानुभूति का मरहम जलन करता हैं.बात कुछ यूं हुई,लड़ाई-झगड़ा में कही बातों को सरला दादी चिकने घड़े की तरह पी जाती थी ,पर उस दिन जब बाबूजी ने उनके चरित्र पर उंगली उठाई,तो पानी सिर से ऊपर गुजर गया,स्वाभिमान पर हथौड़ा सा पड़ा,उसकी मार से तिलमिला गई,बजूद खत्म करना चाहती थी,पर बच्चों की खातिर अपमान-सा घूंट पीकर रह गई,पर उस दिन पश्चात दोनों का दांपत्यजीवन अंजाना-सा हो गया.रस्मों के बंधन सिर्फ चूड़ी-बिछियों तक रह गए.’
दादी के शांतचेहरे के पीछे की पीड़ा सुन नितिशा तड़प उठी.बाबूजी के जीवित रहते दादी ने प्यार के लावे को पाषाणह्रदय में दफन कर दिया था,पर आज वो उबल के बाहर आ ही गया.

बबिता गुप्ता 

मौलिक व अप्रकाशित 

Views: 499

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by babitagupta on February 25, 2019 at 7:27pm

आभार, आदरणीय समर कबीर सरजी।

Comment by Samar kabeer on February 25, 2019 at 2:09pm

मुहतरमा बबीता गुप्ता जी आदाब,अच्छी लघुकथा लिखी आपने,बधाई स्वीकार करें ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"पगों  के  कंटकों  से  याद  आयासफर कब मंजिलों से याद आया।१।*हमें …"
2 hours ago
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"आदरणीय नीलेश जी सादर अभिवादन आपका बहुत शुक्रिया आपने वक़्त निकाला मतला   उड़ने की ख़्वाहिशों…"
2 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"उन्हें जो आँधियों से याद आया मुझे वो शोरिशों से याद आया अभी ज़िंदा हैं मेरी हसरतें भी तुम्हारी…"
3 hours ago
Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"आ. शिज्जू भाई,,, मुझे तो स्कॉच और भजिये याद आए... बाकी सब मिथ्याचार है. 😁😁😁😁😁"
5 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"तुम्हें अठखेलियों से याद आया मुझे कुछ तितलियों से याद आया  टपकने जा रही है छत वो…"
6 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"आदरणीय दयाराम जी मुशायरे में सहभागिता के लिए हार्दिक बधाई आपको"
6 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"आदरणीय निलेश नूर जीआपको बारिशों से जाने क्या-क्या याद आ गया। चाय, काग़ज़ की कश्ती, बदन की कसमसाहट…"
6 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"आदरणीय जयहिंद रायपुरी जी, मुशायरे के आग़ाज़ के लिए हार्दिक बधाई, शेष आदरणीय नीलेश 'नूर'…"
6 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"ग़ज़ल — 1222 1222 122 मुझे वो झुग्गियों से याद आयाउसे कुछ आँधियों से याद आया बहुत कमजोर…"
7 hours ago
Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"अभी समर सर द्वारा व्हाट्स एप पर संज्ञान में लाया गया कि अहद की मात्रा 21 होती है अत: उस मिसरे को…"
7 hours ago
Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"कहाँ कुछ मंज़िलों से याद आया सफ़र बस रास्तों से याद आया. . समुन्दर ने नदी को ख़त लिखा है मुझे इन…"
9 hours ago
Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"आ. जयहिन्द रायपुरी जी,पहली बार आपको पढ़ रहा हूँ.तहज़ीब हाफ़ी की इस ग़ज़ल को बाँधने में दो मुख्य…"
9 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service