चुनावी महाकुंभ के नगाडे की टंकार में
चौतरफा राजनीति का हुआ महौल गरमागरम
ईद के चांद हुए नेता जो ,
चिराग लेकर ढूंढने पर थे नदारद
योजनाओं की बरसात होने लगी
धूल उडती गड्ढे वाली सडकों पर
चुनावी सीमेंट चढ गया
उजाड बंजर खेती पर
हरियाल करने का मरहम लगाते
कंबल, साडी, दारू, मुर्गा का
बंदरबांट का फार्मूला चलाते
नित नए तरीकों से वोटरों को रिझाते
चरणवंदन कर, घडियाली ऑंसू बहाते
खोखले वायदों की दहाड,
ना खायेंगे, ना खाने देगे
दिए प्रलोभन, दिखाई चतुराई भरी कुटिलता
दूध का दूध, पानी का पानी करने की
क्षमता आम आदमी की विस्मृत हो गई
फिर, हरबार की तरह भरोसा हो गया
बदहाली जीवन में उम्मीद की रोशनी फूट गई
वादा किया , शत प्रतिशत जीत दिलाने का
मतदान बहिष्कार का ऐलान ठंडा पड गया
एक बार फिर मतदाता अपने आप से भटक गया।
मौलिक व अप्रकाशित
बबीता गुप्ता
Comment
आ. बबीता जी, सुंदर कविता हुयी है । हार्दिक बधाई ।
आदरणीय बबिता गुप्ता जी इस सुन्दर प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई| सादर
हार्दिक बधाई आदरणीय बबिता गुप्ता जी। बेहतरीन कविता।
आदाब। बेहतरीन चित्रण। कटाक्षपूर्ण व विचारोत्तेजक। हार्दिक बधाई आदरणीयाबबीता गुप्ता साहिबा।
मुहतरमा बबीता जी आदाब,सुंदर प्रस्तुति हेतु बधाई ।
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