2122 2122 2122 212
आंच आई गर कभी इस देश के अभिमान पर
बच्चा बच्चा मर मिटेगा अपने हिंदुस्तान पर//1
ये तिरंगा झुक नहीं सकता किसी के सामने
सर कटा देंगे हम अपना इसकी ऊंची शान पर//2
चाहे जितनी मुश्किलें आएं हमारी राह में
दाग़ हम लगने न देंगे देश के सम्मान पर//3
जीत लेंगे जंग हम दुश्मन लड़े चाहे जहां
ख़ौफ़ बरपा हम करेंगे शत्रु की मुस्कान पर//4
ज़ुल्म हम करते नहीं पर ज़ुल्म सहते भी नहीं
है भरोसा हमको अपने शांति के अभियान पर//5
गर तमन्ना है कि तू सदियों तलक ज़िंदा रहे
शौक़ से हो जा शहीद अपने वतन की आन पर//6
झूठ का डंका बजा है हर तरफ़ बस शोर है
सच निछावर हो गया है वक़्त के मीज़ान पर//7
अन्नदाता भूख से जब मर रहा हो हर कहीं
उंगलियाँ उठनी हैं लाज़िम वक़्त के सुल्तान पर//8
चंद सिक्कों के लिए जो बिक गए बाजार में
वो नसीहत कर रहे हैं मर मिटो ईमान पर//9
एक क़तरा खूँ कभी जिनका न मिट्टी में गिरा
ज़ोर वो भी दे रहे हैं जंग के ऐलान पर//10
आज टीवी देखकर विज्ञान भी शर्मिंदा है
ज़ह्र कैसे बो रहा ये धर्म के उन्वान पर//11
मौलिक और प्रकशित
--क़मर जौनपुरी
Comment
मोहतरम समर कबीर साहब आदाब।
बहुत बहुत शुक्रिया आपका हौसला आफ़ज़ाई के लिए। ममनून हूँ आपका।
जनाब क़मर जौनपुरी जी आदाब,अच्छी ग़ज़ल कही आपने,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
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