"अंतर्रष्ट्रिय महिला दिवस पर विशेष"
सिर्फ माँ बहन पत्नी बेटी की,
परिभषा में मत उल्झओ ।
सबसे पहले मैं एक स्त्री हूँ,
मुझे मेरा सम्मन दिलवाओ।।
सिर्फ वंश बढाने के लिए ही,
मेरा जन्म हुआ है क्या बतलाओ ।
दो दायित्व हैं मेरे कांधौ पर,
मैं डिगूँ तो हौसला बढाओ।।
सिर्फ दो वक्त की रोटी ही नही,
कुछ और भी चाहिए परिवार से ।
घडी दो घडी पास आकर बैठो,
और थोडा ढाँढ्स भी बढाओ।।
सिर्फ बातोँ से मत बहलाओ,
कुछ अलहदा करके दिखलाओ ।
रोक टोक सिर्फ बेटियोँ पे नहीं,
कभी बेटोँ को भी धमकाओ।।
सिर्फ महिला दिवस पर पुष्प गुच्छ,
और दिन भी तो दे आओ ।
कहो अपनी कुछ सुनो हमारी,
ऐसे प्रीत की रीत निभाओ।।
इस बार के महिला दिवस पर,
बस इक ये संकल्प उठाओ ।
हमें अबला कहना बंद करो अब,
सबलाओ से नज़र मिलाओ।।
.
-प्रदीप देवीशरण भट्ट-
मौलिक व अप्रकशित
Comment
शुक्रिया समर जी एवम अन्य सुधीजनो का
जनाब प्रदीप भट्ट जी आदाब,महिला दिवस पर अच्छी रचना पेश की आपने,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
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