माँ की लोरी सुनकर सोने वाला शिशु,
बाप की उंगली पकड चलने वाला शिशु,
दादी नानी से नये किस्से सुनने वाला शिशु,
खिलौने के लिए बाज़ार में मचलने वाला शिशु।
बडा हो गया , इतना के अदब भूल गया है,
महत्वकाशाँ को पाले, सपने पूरे करने की जिद में,
रिश्तो की ले रहा बली, माँ चुप और बाप मौन है,
सुन लाल तेरे सिवा हमारा जग में कौन है।।
वातावरण में नीरवता
महत्वकाशाँ के स्वप्न पंखो पर आरुढ होकर,
वो चल पडा फिर गांव से शहर की ओर,
पत्थरो के शहर में गश्त करते पोलिस जवान,
जैसे बियाबान,तभी किसी ने अंदर खींचा,बिठाया।
एक बुज़ुर्ग फुस्फुसाया शहर में आज़ कर्रफ्यू है,
तुम कौन? उसने पूछा मैने बताया उसने अट्टाहस लगाया,
फिर पूछा क्या करोगे शहर में,मैने कहा कुछ भी,
युवा हूँ और युवा चाहे तो क्या कुछ नहीं कर सकता।।
फिर एक लंबी खामोशी
तो तुम युवा हो, वायु के रथ पर सवार ,
कोई कैसे सीखा सकता है के तुम्हे कैसे जीना है,
तुम नये ज़माने के युवा हो और आज़ाद भी हो,
युवा यानि जोश और खरोश से लबालब सागर।
युवा अगर बढे तो आसमाँ छू ले और पलटे तो वायु,
और वायु यानि शक्ति का एक अतुलनीय भंडार,
जो कभी भी नहीं डरता, उससे कैसी तकरार,
वो गर चल पडे तो इस पार या फिर उस पार।।
मगर सावधान
वत्स ये तुम्हारा प्यारा, न्यारा गांव नही है ,
जहाँ जीवान प्रेम से शुरु ,प्रेम पर खत्म होता है,
जहाँ कुछ अप्रिय होने पर बुज़ुर्ग सम्भाल लेते हैं,
ये पत्थरो का एक विशाल जंगल रुपी शहर है।
यहाँ शिकार की तलाश में गिद्ध दृष्टि गडाये बैठे हैं,
ये गिद्द युवा नहीं बुढे हैं शिकार करने में असमर्थ,
ये बहलायेंगे फुसलायेंगे उकसायेंगे अपने स्वार्थ के लिए,
अब निर्णय तुम्हे करना है अपने विवेक के बल पर।।
किंतु ठहरो
निर्णय से पूर्व अपनी महत्वकांशाओ को तराजू में तोलो,
महत्व समझो और देखो इनको अपने भविष्य के दर्पण में,
क्या आवश्यक है इनका बोझ ढोते ढोते यूँ ही मर जाना,
या ऐसा पथ चुनना जिसमें सुख भी हो और शांति भी ।
चलो इस असमंजस से बाहर निकलो और निर्णय लो,
अन्यथा ये बूढे और चालाक गिद्द तुम्हे कही का ना छोडेंगे,
तुम सम्भल गये तो सहस्रो के प्राण वायु बन सकोगे,अन्यथा,
ना युवा ना वायु बाल्कि शहर के गिद्दो में एक गिनती मात्र।।
-प्रदीप भट्ट- मौलिक व अप्रकशित
Comment
एक अच्छा प्रस्तुतिकरण सुंदर बधाई स्वीकारें|
जनाब प्रदीप भट्ट साहिब आदाब,अच्छी रचना हुई है,बधाई स्वीकार करें ।
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