"अरे पागल हो गए हो क्या, उस ऑटो को क्यों जाने दिया. इतना टेंशन हैं चारोतरफ और हम लोग यहाँ फंसे हुए हैं जहाँ तीन दिन पहले ही दंगे हुए थे", राजेश एकदम बौखला गया.
"चिंता मत करो, अब स्थिति कुछ ठीक हैं, दूसरा आ जायेगा", उसने इत्मीनान से कहा और सामने सड़क पर देखने लगा.
तभी एक दूसरा ऑटो आता दिखाई पड़ा, ऑटो ड्राइवर को देखकर ही राजेश को समझ आ गया कि यह गैर मज़हबी है और वह थोड़ा पीछे हो गया.
"आ जाओ, चलना नहीं हैं क्या", कहते हुए वह राजेश का हाथ खींचते हुए ऑटो में बैठ गया.
कुछ समय बाद दोनों मुख्य सड़क पर थे जहाँ स्थिति कमोबेश सामान्य थी. एक आती हुई बस में सवार होने के बाद राजेश ने उससे पूछा "तुम्हें हो क्या गया था, एक तो जगह गड़बड़ थी और दूसरे अपने वाले ऑटो को छोड़कर उस ऑटो में बैठ गए. आगे से ऐसा रिस्क लेना हो तो मुझे मत लपेटना, जान सूख गयी थी मेरी".
उसने राजेश के कंधे को सहलाया और बोला "मुझे आज भी २५ साल पहले के एक ऑटो ड्राइवर का चेहरा नहीं भूलता जिसके ऑटो में मैंने बैठने से मना कर दिया था. उस समय इंदिरा गाँधी की हत्या हुई थी और वह ऑटो ड्राइवर एक बूढ़ा सरदार था. मुझे आज भी उसकी निगाहें उसके मजहब के ऊपर किये गए शक के लिए अंदर से कचोटती हैं".
बस में लग रहे शुरूआती झटके अब शांत हो गए थे, वह आँख मूँद कर चुपचाप सीट पर सर टिकाकर लेट गया.
मौलिक एवम अप्रकाशित
Comment
आपने बिलकुल सही कहा, इस विस्तृत और उत्साह बढ़ाने वाली टिप्पणी के लिए बहुत बहुत आभार आ तेजवीर सिंह साहब
इस टिप्पणी के लिए बहुत बहुत आभार आ मुहतरम जनाब शेख शहजाद उस्मानी साहब
हार्दिक बधाई आदरणीय विनय कुमार जी।बहुत सार्थक संदेश देती लघुकथा।यह एक कटु सत्य है कि हमारे देश में इस तरह की कुत्सित राजनीति आजकल अपने चरम पर है। सबसे दुखद पहलू यह है कि जिन लोगों को इसे मिटाने का जिम्मा है वही इसे और अधिक बढ़ावा देते हैं।पुनः हार्दिक बधाई।
आदाब। बेहतरीन सृजन। हार्दिक बधाई आदरणीय विनय कुमार साहिब।
इस विस्तृत टिपण्णी के लिए बहुत बहुत आभार आ नीलम उपाध्याय जी
इस टिपण्णी के लिए बहुत बहुत आभार आ मुहतरम जनाब समर कबीर साहब
इस विस्तृत टिपण्णी के लिए बहुत बहुत आभार आ प्रतिभा पांडे जी. आपका सुझाव बेहतर है, संशोधन किया जा सकता है. इसी तरह हौसलाअफ़ज़ाई करते रहें
एक संवेदनशील विषय पर बहुत ही सूंदर रचना. प्रस्तुति के लिए बधाई स्वीकार करें आदरणीय विनय कुमार जी।
जनाब विनय कुमार जी आदाब,बहुत उम्दा लघुकथा लिखी आपने,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
कसे हुए शिल्प के साथ सुन्दर विचारोत्तोजक रचना के लिये बधाई आदरणीय विनय जी । नेता के नाम की जगह 'एक बड़ा नेता ' लिखना ज्यादा ठीक होता क्योंकि 'बूढे सरदार ड्राइवर' का जिक्र काफी है उस समय के माहौल को दर्शाने के लिये।
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