२२१/ २१२१/२२२/१२१२
लेकर शराब साड़ियाँ मतदान कीजिए
फिर पाँच साल जिन्दगी हलकान कीजिए।१।
देता है जो भी सीख ये तुमको चुनाव में
फूलों से ऐसे नेता का सम्मान कीजिए।२।
बाँटेंगे जात धर्म की सरहद में खूब वो
मत खाक उनका आप ये अरमान कीजिये।३।
सीढ़ी हो उनके वास्ते कुर्सी की राह पर
हर लक्ष्य उनका आप ही परवान कीजिए।४।
सेवक हैं उनको आप मत दुखड़ा सुनाओ यूँ
आँसू नयन के पी अधर मुस्कान कीजिए।५।
रस्ता यही है शेष जो छोड़ा है आपको
रोने को उम्र भर इन्हें भगवान कीजिए।६।
***
मौलिक/अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
Comment
जी,ठीक है ।
आ. भाई समर जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा व मार्गदर्शन के लिए आभार। इंगित मिसरे को इस प्रकार किया है देखिएगा..
अब खाक उनका यूँ न ये अरमान कीजिये'
जनाब लक्ष्मण धामी 'मुसाफ़िर' जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।
'मत खाक उनका आप ये अरमान कीजिये'
इस मिसरे में 'मत ख़ाक' का प्रयोग ठीक नहीं,इसे बदलने का प्रयास करें ।
आ.भाई तेजवीर जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार।
हार्दिक बधाई आदरणीय लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'जी।लाज़वाब गज़ल।बेहतरीन संदेश।
बाँटेंगे जात धर्म की सरहद में खूब वो
मत खाक उनका आप ये अरमान कीजिये।३।
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