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चुपचाप देखते रहते हो...

 

जाने कैसा दौर गुज़र रहा है ये ,

खुदा का घर दहशत में है

जन्नत लिपटी पड़ी  है नुकीले तारों में

खूब चलता है ब्योपार इन दिनों नुकीली तारों का |

 

बर्फ की चादर अब तो मैली हो चली है

 

खून के धब्बों से ,

जख्मी हो गए हैं

बन्दूक की नोक पर कदम रखती

ज़िन्दगी के तलवे भी ,

चल नहीं सकती रेंगा करती है अब |

 

सिर्फ झीलें ही नहीं जमती

स्याह मौसम ने आँखों के सागर भी जमा दिए हैं

दर्द बरसते हैं , आंसू नहीं |

 

अज़ानों की जगह अब

गोलियों की चीखों ने ले ली है ,

सर झुकाते ही इबादत में

पैरों के नीचे से ज़मीन खींच लेते हैं |

 

चुपचाप देखते रहते हो...

अपने बनाए स्वर्ग को

तब्दील होते नर्क में ,

या खुदा ! क्या तेरा दिल भी पत्थर का हो गया है ?

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Comment by Veerendra Jain on July 5, 2011 at 12:59pm
Neelam ji , Arun ji , Vasudha ji.... hausla afzai ke liye bahut bahut shukriya...
Comment by Vasudha Nigam on July 5, 2011 at 12:55pm
मर्मस्पर्शी रचना
Comment by Abhinav Arun on July 1, 2011 at 9:04pm

बेहद यथार्थ परक रचना बहुत बहुत बधाई !!

Comment by Neelam Upadhyaya on June 30, 2011 at 10:19am

अज़ानों की जगह अब
 गोलियों की चीखों ने ले ली है ,
सर झुकाते ही इबादत में
पैरों के नीचे से ज़मीन खींच लेते हैं |

 

बहुत ही सुन्दर !

Comment by Veerendra Jain on June 29, 2011 at 11:01am
Ashish ji , Sharda ji.. hausla afzai ke liye bahut bahut shukriya..
Comment by आशीष यादव on June 28, 2011 at 7:20pm
Bahut sundar ewam marmik rachna pesh ki h aapne virendra bhai. Bilkul aaj k samay ki h. Bahut-bahut badhai.

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