"याद पिया की आए" ठुमरी लैपटॉप में मद्दम स्वर में बज रही थी, बाहर बरसती हुई बूंदों का शोर मन में हलचल मचाना चाह रही थी. उसने अपनी चाय की प्याली उठायी और होठों से लगा लिया. चाय कुछ ठंडी हो गई थी लेकिन उसे इसका एहसास नहीं था. उसे तो अधखुली आँखों से खिड़की के बाहर टपकती बारिश की बूंदें दिख रही थी और उस्ताद बड़े ग़ुलाम अली साहब की जादुई आवाज सुनाई दे रही थी.
अक्सर ऐसे मौकों पर, जब वह नितांत अकेले ही रहना चाहता है, फ़ोन को साइलेंट मोड में कर देता है. लेकिन आज न जाने कैसे वह भूल गया था और फोन का रिंग टोन "तेरे आने की जब खबर महके" बजी तो उसे लगा कि काश यह फोन बिलकुल खामोश ही रहता. एक बार पूरी रिंगटोन बज गयी, ठुमरी और ग़ज़ल आपस में मिक्स हो गए. वह चुपचाप अधलेटा ही पड़ा था लेकिन रिंगटोन दुबारा बजने लगी. अब उसे लगा जैसे जगजीत सिंह साहब उससे कह रहे हों कि थोड़ा सा समय हमें भी दे दो. पिछले तीन साल से उसने यह रिंगटोन बदला नहीं था, वजह सिर्फ इतनी थी कि वह जब पहली बार श्वेता से मिलने गया था तो उसके कमरे में यही ग़ज़ल बज रही थी. उसने अपनी तरफ से इस ग़ज़ल और उस वक़्त को मिलाकर बहुत कुछ मतलब निकाला, लेकिन समय के साथ उसे लग गया कि इस ग़ज़ल का उस समय बजना महज एक संयोग था, और कुछ नहीं. एकाध बार उसने कुछ खुलने की कोशिश की तो श्वेता ने ध्यान नहीं देने जैसा वर्ताव किया. कल हिम्मत करके उसने कह दिया था कि हम क्या आगे के बारे में कुछ सोच सकते हैं तो श्वेता ने तुरंत टोक दिया "हम अच्छे दोस्त हैं, उससे ज्यादा कुछ नहीं. कोई ग़लतफ़हमी मत पालना".
उसने उठकर फोन देखा, श्वेता का ही फोन था. अमूमन श्वेता का नाम देखकर उछल पड़ने वाला उसका दिल आज कुछ सामान्य सा था. कुछ पल वह फोन को हाथ में लेकर देखता रहा, फोन बंद हो गया, उसने वापस उसे मेज पर रख दिया. उधर लैपटॉप में "बैरी कोयलिया कूक सुनाए" चल रहा था, बाहर बारिश थोड़ी तेज हो गयी थी. वह वापस सोफे पर अधलेटा सा पड़ गया, फोन में मैसेज का टोन बजा.
ग़लतफ़हमी न हो तो चीजें कितनी अनरोमांटिक हो जाती हैं, उसे महसूस हो गया था. बाद में मैसेज का जवाब दे देगा सोचते हुए उसने आंख मूंद ली, बारिश अब भी उसी रफ़्तार से हो रही थी.
मौलिक एवम अप्रकाशित
Comment
इस सुंदर टिप्पणी के लिए आभार आ तस्दीक़ अहमद खान साहब
इस सुंदर टिप्पणी के लिए आभार आ तेज वीर सिंह जी
जनाब विनय कुमार साहिब, अच्छी लघुकथा हुई है मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं
हार्दिक बधाई आदरणीय विनय कुमार जी।एक अलग सी नवीनता लिये हुए बेहतरीन लघुकथा।
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