यह तीसरी बार था जब वह व्यक्ति चिल्ला रहा था और उठ कर भागने का प्रयास कर रहा था "मुझे कुछ नहीं हुआ है, मुझे जाने दो". खून का बहना अभी तक रुका नहीं था और उसके चेहरे से लेकर कपड़ों तक फ़ैल गया था. दो कम्पाउंडरों ने उसे पकड़ कर वापस लिटा दिया और डॉक्टर फिर से उसके सर पर दवा लगाकर पट्टी बांधने की तैयारी कर रहा था.
बमुश्किल आधे घंटे पहले ही उसने सड़क के दूसरी तरफ इस एक्सीडेंट को होते हुए देखा था और रात के सन्नाटे में वह अपनी गाड़ी मोड़कर वापस आया. वहां मौजूद लोगों की मदद से उसने उसे इस हस्पताल में भर्ती कराया और डॉक्टर ने तुरंत प्राथमिक उपचार की तैयारी शुरू कर दी. इस दरम्यान उसकी हरकतों से पता चल गया था कि घायल व्यक्ति काफी नशे में था और इसीलिए दुर्घटना भी हुई थी.
डॉक्टर ने उसके माथे से खून साफकर जैसे ही दवा लगाने की कोशिश की, वह व्यक्ति फिर से उठ बैठा. अब जैसे ही उसने वापस बड़बड़ाना शुरू किया, डॉक्टर बुरी तरह झल्ला गया और उसने गुस्से में बोला "जाने दो इस पियक्कड़ को, इतने नशे में है कि कुछ समझ में ही नहीं आ रहा है इसको".
इतना बोलकर डॉक्टर जैसे ही रुका, उसने धीरे से कहा "लेकिन डॉक्टर, हम तो नशे में नहीं हैं, इसकी जान बचाना जरुरी है".
कुछ पल बाद वह भी दोनों कम्पाउंडरों के साथ घायल को पकड़े हुए था और डॉक्टर ख़ामोशी से पट्टी लगा रहा था.
मौलिक एवम अप्रकाशित
Comment
इस विस्तृत और प्रोत्साहित करती टिप्पणी के लिए बहुत बहुत आभार आ नीता कसार जी
बहुत बहुत आभार आ सुरेन्द्र नाथ सिंह 'कुशक्षत्रप' जी
बहुत बहुत आभार आ तेज वीर सिंह जी
अमूमन डाक्टर से ये अपेक्षा की जाती है वे हर परिस्थति में संयम बनाये रखें।पर वे भी इंसान है।पर जो होश में है वे ही ज़िम्मेदारी समझें।संदेशप्रद कथा के के लिये बधाई आद० विनय कुमार जी ।
हार्दिक बधाई आदरणीय विनय कुमार जी।बेहतरीन लघुकथा।
आद0 विनय जी सादर अभिवादन। बढिया लघुकथा लिखी आपने। इस प्रस्तुति पर बहुत बहुत बधाई।सादर
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