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फासले बेकरार करते हैं ।
और हम इतंजार करते हैं ।।
इक तबस्सुम को लोग जाने क्यूँ ।
क़ातिलों में सुमार करते हैं ।।
सिर्फ धोखा मिला ज़माने से ।
जब कभी ऐतबार करते हैं ।।
मैं तो इज्ज़त बचा के चलता हूँ ।
और वह तार तार करते हैं ।।
उम्र गुज़री है बस चुकाने में ।
आप जब भी उधार करते हैं।।
उनको गफ़लत हुई यही यारो ।
इश्क़ हम से हजार करते हैं ।।
हुस्न की बेसबब नुमाइश कर ।
गुल खिंजा को बहार करते हैं।।
अब मुहब्बत की बात क्या करना ।
जब वो खंजर पे धार करते हैं ।।
हाले दिल अब न पूछिये हमसे ।
आप तो इश्तिहार करते हैं ।।
कितने शातिर हैं शह्र वाले ये ।
पीठ पे रोज वार करते हैं ।।
बेचते अब ज़मीर दौलत पर ।
वो यही कारोबार करते हैं ।।
कुछ वफाओं का वास्ता देकर ।
लोग दिल का शिकार करते हैं ।।
डॉ नवीन मणि त्रिपाठी
मौलिक अप्रकाशित
Comment
आ. भाई नवीन जी, सुंदर गजल हुई है । हार्दिक बधाई ।
हार्दिक बधाई आदरणीय नवीन मणि जी। बेहतरीन गज़ल।
सिर्फ धोखा मिला ज़माने से ।
जब कभी ऐतबार करते हैं ।।
मैं तो इज्ज़त बचा के चलता हूँ ।
और वह तार तार करते हैं ।।
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