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आपने जुमलों में असर पैदा कर ।
कुछ तो जीने का हुनर पैदा कर ।।
दिल जलाने की अगर है ख्वाहिश ।
तू भी आंखों में शरर पैदा कर ।।
गर ज़रूरत है तुझे ख़िदमत की ।
मेरी बस्ती में नफ़र पैदा कर ।।
हर सदफ जिंदगी तो मांगेगी ।
इस तरह तू न गुहर पैदा कर ।।
देखता है वो तेरा जुल्मो सितम।
दिल में भगवान का डर पैदा कर ।।
अब तो सूरज से है तुझे खतरा ।
सह्न में कोई शजर पैदा कर ।।
तीरगी से है अदावत तेरी ।
शब ए पूनम सा क़मर पैदा कर ।।
देख लूं मैं तुझे भी जी भर के ।
या ख़ुदा मुझमें बसर पैदा कर ।।
बज्मे दिल से तू चला जायेगा ।
हिज्र के नाम ज़िगर पैदा कर ।।
स्याह ये रात गुजरनी मुश्किल ।
अपने दम पे तू सहर पैदा कर ।।
चाहतें मेरी समझने के लिए ।
ऐ सनम एक नज़र पैदा कर ।।
डॉ नवीन मणि त्रिपाठी
मौलिक अप्रकाशित
Comment
जनाब नवीन साहिब, अच्छी ग़ज़ल हुई है,मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं
शेर 1_उला मिसरे में आपने की जगह अपने करलें
शेर 4_ ऊला मिसरा लय में नहीं है, यूँ कर सकते हैं "जिंदगी मांगेगी हर एक सदफ"
शेर 6_ऊला मिसरा बहर में नहीं है, यूँ कर सकते हैं "अब तो सूरज से है तुझको ख़तरा"
शेर 7_ सानी मिसरे में शब और पूनम में इज़ाफत सही नहीं है, यूँ कर सकते हैं, " चौदहवीं शब सा क़मर पैदा कर"
शेर 8_ ऊला मिसरा लय में नहीं है, यूँ कर सकते हैं," देख लूँ मैं भी तुझे जी भर के" सानी मिसरे में बसर की जगह
बशर कर लीजिए
हार्दिक बधाई आदरणीय नवीन मणि जी। बेहतरीन गज़ल।
देखता है वो तेरा जुल्मो सितम।
दिल में भगवान का डर पैदा कर ।।
आ. भाई नवीन जी, सुंदर गजल हुई है । हार्दिक बधाई।
आद0 नवीन मणि त्रिपाठी जी सादर अभिवादन। बढ़िया ग़ज़ल कही आपने। शैर दर शैर दाद के साथ बधाई स्वीकार कीजिए
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