शृंगारिक दोहे :
नैनों से बरखा बहे, जब से छूटा हाथ।
नींदें दुश्मन हो गईं, कब आओगे नाथ।1।
एक श्वास तुम साथ हो, एक श्वास तुम दूर।
कैसी है ये दिल्लगी, कुछ तो कहो हुज़ूर।2।
कातिल हसीन शोखियाँ, हैं आपकी हुजूर।
नज़र न कर बैठे कहीं , बहका हुआ कुसूर।3।
सावन की बौछार में, भीगा हुआ शबाब।
बहके रिंदों की कहीं, नीयत हो न ख़राब ।4।
तुम तो साजन रात के, तुम क्या जानो पीर।
भोर हुई तुम चल दिए, नैन बहाएँ नीर।5।
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आदरणीय लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' जी सृजन पर आपकी दिलकश प्रशंसा का दिल से आभार।
आ. भाई सुशील जी, सुंदर दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।
हार्दिक बधाई आदरणीय । बेहतरीन दोहे।
आदरणीय Tasdiq Ahmed Khan जी सृजन पर आपकी दिलकश प्रशंसा का दिल से आभार।
आदरणीय TEJ VEER SINGH जी सृजन पर आपकी दिलकश प्रशंसा का दिल से आभार।
जनाब भाई सुशील सरना साहिब, सुंदर दोहे हुए हैं मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं
हार्दिक बधाई आदरणीय सुशील सरना जी। बेहतरीन दोहे।
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