मैं मानता हूँ कि यदि विद्यालयीन पाठ्यक्रमों में हिंदी साहित्य विधाओं की छोटी रचनायें कहानियां आदि/अतुकांत कविताएं/ क्षणिकाएं/कटाक्षिकायें आदि सम्मिलित की जायें; योग्य हिंदी शिक्षकों द्वारा बढ़िया समझाई जायें, तो विद्यार्थी उन्हें अधिक पसंद करेंगे।
अभी विद्यालयों में हिंदी पाठ भलीभांति कहाँ समझाये जा रहे हैं? मुख्य कठिन विषयों के पाठ्यक्रमों के प्रति समर्पित होने के कारण भाषा के विषयों के साथ न्याय नहीं हो पा रहा है।
मैं लगभग 27 सालों से अंग्रेज़ी भाषा विषय का शिक्षक हूं लेकिन समय-समय पर व्याकरण या कविताएं कक्षा में पढ़ाते समय हिंदी की पाठ्यपुस्तक भी निकलवा कर तुलनात्मक अध्ययन करा कर हिंदी साहित्य की तरफ़ भी बच्चों की रुचि बढ़ाने की कोशिश करता हूंँ, लेकिन सब निरर्थक! क्योंकि हिंदी भाषा शिक्षण केवल पाठ्यक्रम पूरा करने की औपचारिकता पूरी कर रहे हैं। हिंदी भाषण व वाद-विवाद और निबंध लेखन या रचनात्मक लेखन की प्रतियोगितायें या तो नगण्य की स्थिति में हैं या केवल 7-8 छात्रों को लेकर औपचारिकता निभाने की स्थिति में।
तो मैं जब भी होम ट्यूशनों में बच्चों के घर जाता हूंँ या अपनी कोचिंग संस्था में अंग्रेज़ी पढ़ाता हूं, तो समय-समय पर हिंदी भाषा से संबंधित रचनात्मक गतिविधियों को किसी न किसी मौखिक अथवा लिखित विधा में सम्मिलित करता रहा हूँ।
गर्मियों की छुट्टियों में बाल-पत्रिकाओं की तरफ़ बच्चों की अभिरुचि यथासंभव बढ़ाने की कोशिश के क्रम में एक बार मैंने अपनी कोचिंग कक्षा में हिंदी की बाल-पत्रिका से कविता गायन व कहानी पाठ कराने के अलावा लेखन कराने की भी कोशिश की। पहले तो कक्षा नवीं-दसवीं के बच्चे ख़ूब हंसे! फ़िर न-नुकुर करने लगे! अंग्रेज़ी भाषा सुझाने लगे! मेरे द्वारा सख़्ती से आदेश दिए जाने पर विवश हो कर उन्होंने किसी तरह कविता गायन और कहानी पाठ कर ही दिया। हाँ, अच्छे सुसंस्कृत परिवारों के दो-तीन प्रतिभाशाली बच्चों ने अवश्य रुचि लेकर अच्छी प्रस्तुतियाँ दीं।
ये बात उल्लेखनीय रही कि जब मैंने स्वयं अभिनय सा करते हुए कविता व कहानी पाठ कर उदाहरण प्रस्तुत किये, तभी बच्चों ने मेरे आदेश का पालन किया। कोरे भाषणों/प्रवचनों से बच्चे प्रेरित नहीं होते। टीएलएम की तरह मौलिक टीचिंग-लर्निंग मटैरियल से हम शिक्षकगण बच्चों से हिंदी भाषा संबंधित रचनात्मक गतिविधियाँ कम-से-कम गर्मियों की छुट्टियों व अन्य अवकाशों में करवा ही सकते हैं। ये भी सच है कि यदि परिवारजन भी ऐसा अपने घर, कॉलोनी, बर्थ-डे पार्टियों आदि में करते रहें, तो बेहतर परिणाम मिलेंगे। मैंने अपने निजी प्रयासों से ऐसे भी रिस्क लिए लेकिन अपेक्षित व आवश्यक सहयोग और सहभागिता न मिल पाने के कारण सफल नहीं हो सका।
प्राथमिक कक्षाओं में शिक्षकगण हिंदी/अंग्रेज़ी कवितायें/पोइम्ज़/राइम्ज़ गा-गा कर या स्मार्ट क्लास में उनके वीडियोज़ दिखा कर बच्चों से पाठन व गायन और कंठस्थीकरण सफलतापूर्वक करवा लेते हैं। लेकिन कक्षा छटवीं से दसवीं तक ऐसा करवा पाने में मैं लगभग असफल ही रहा। दरअसल बच्चों में परीक्षा पाठ्यक्रम समय सीमा में पूरा करने/करवाने, मासिक टेस्ट, मिड-टर्म परीक्षाओं, औपचारिक से असाइनमेंट/प्रोजेक्ट पूरा करने आदि का दवाब अधिक रहता है।
शीतकालीन व ग्रीष्मकालीन अवकाशों के
असाइनमेंट/प्रोजेक्ट कार्य में मैंने जब भी हिंदी या अंग्रेज़ी रचनात्मक लेखन करवाने की कोशिश की, केवल अनमनी सी औपचारिकता ही देखने को मिली। बच्चे फाइल सजाने, इंटरनेट से सामग्रियाँ जुटाकर फाइलों में चिपकाने में अधिक रुचि लेते रहे, वह भी अधिक अंक या बढ़िया ग्रेड पाने की लालसा में; न कि भाषा या साहित्य सीखने के लिए!
घर में भी संयुक्त परिवार के या कॉलोनी के बच्चों में ऐसी कोशिशें करने पर मुझे अपेक्षित सफलता नहीं मिली। हो सकता है कि एकल प्रयास में कोई कमी रही हो।
बहरहाल मैं भी यही मानता हूँ कि कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती। हिंदी भाषा/साहित्य के प्रति बच्चों के लगाव हेतु एक-एक क़दम तबियत से हमें उठाने ही होंगे।
[मौलिक व अप्रकाशित]
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