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कितना अफ़्कार में मश्ग़ूल हर इक इन्साँ है(४३ )

कितना अफ़्कार में मश्ग़ूल हर इक इन्साँ है 
कोई बेफ़िक्र अगर है तो सियासतदाँ है 
**
ख़ाक उड़ती है जिधर देखूँ उधर सहरा-सी 
इस क़दर दिल का नगर आज मेरा वीराँ है 
**
बात गुस्से में कही फिर से ज़रा ग़ौर तो कर 
"जी ले तू प्यार के बिन " कहना बहुत आसाँ है 
**
कोई अफ़सोस नहीं गर मेरी रुसवाई का 
शर्म से क्यों हुई ख़म यार तेरी मिज़गाँ है 
**
मुख़्तलिफ़ आम नज़रिया-ए-मुहब्बत देखा 
कोई फ़िरदोष कहे कोई कहे ज़िन्दाँ है 
**
कौन तारीकी करे दूर भला तेरे सिवा 
सिर्फ़ अल्लाह तेरे दम से जहाँ रुख्शाँ है 
**
इन  अनासिर से बने जिस्म पे इतरा मत तू 
हुस्न हद से हो जियादा तो वबाल-ए-जाँ है 
**
उसको अब दार पे लटकाना ज़रूरी है बहुत 
जुर्म करता है वतन में जो शरर-अफ़्शाँ है 
**
है जहाँ प्यार वहीं अस्ल में फ़िरदोष 'तुरंत ' 
और तू ही तेरे फ़िरदोष का ख़ुद रिज़्वाँ है 
**
शब्दार्थ -अफ़्कार =चिंताओं ,मश्ग़ूल=संलग्न 
वीराँ=उजड़ा हुआ ,मिज़गाँ=पलक,मुख़्तलिफ़=अलग 
फ़िरदोष=स्वर्ग , ज़िन्दाँ=क़ैदख़ाना ,तारीकी=अँधेरा 
रुख्शाँ=प्रकाशमान ,अनासिर=पञ्चतत्व 
वबाल-ए-जाँ=जी का जंजाल ,दार =सूली 
शरर-अफ़्शाँ=उपद्रवी ,रिज़्वाँ=स्वर्गाधीश 
**
गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' बीकानेरी | 

(मौलिक व अप्रकाशित )

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Comment by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on May 27, 2019 at 3:41pm

आपकी हौसला आफ़जाई के लिए बहुत बहुत आभार  Pradeep Devisharan Bhatt जी 

Comment by प्रदीप देवीशरण भट्ट on May 27, 2019 at 1:07pm

अच्छि गज़ल हुई गह्लौत जी

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