(१२१२२ १२१२२ १२१२२ १२१२२ )
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मेरे वतन की सियासतों के क़मर को राहू निगल रहा है
उक़ूल पर ज्यों पड़े हैं ताले अदब का ख़ुर्शीद ढल रहा है
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किसी की माँ का नहीं है रिश्ता किसी भी दल से मगर यहाँ पर
ये पाक रिश्ता भरी सभा में बिना सबब ही उछल रहा है
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किसी ने की याद सात पुश्तें किसी को कह डाले चोर कोई
जुबान बस में नहीं किसी की जुबाँ का लहज़ा बदल रहा है
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कोई करा दे कहीं पे दंगे किसी भी मज़हब की आड़ लेकर
कहीं पे जादू चला किसी का कहीं पे फ़तवा भी चल रहा है
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ग़रीब के सब हिमायती हैं तमाम वादे उसी की ख़ातिर
यहाँ इसी कश्मकश में लेकिन ग़रीब का दम निकल रहा है
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अवाम चुपचाप देखता है अजब नज़ारे सियासतों के
लगे है ऐसे कि घर में आकर कोई उसे जैसे छल रहा है
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न अब अटल सा है मीर कोई न रहनुमा है कलाम जैसा
गिरा है मेयार मीर का जो उरूज से नित फिसल रहा है
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चुनाव आयोग दायरे में रहे सदा चाहती सियासत
तमाम कोशिश के बावज़ूद अब उसी का सिक्का ही चल रहा है
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शराब साड़ी बँटे अभी भी तमामतर टोटके भी जारी
जगह जगह नोट का यूँ मिलना 'तुरंत' जनता को खल रहा है
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गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत 'बीकानेरी |
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
// उरूज़ का अर्थ बुलंदी से लिया है//
तो इसे "उरूज" कर लें,'ज्' के नीचे से बिंदी हटा लें ।
आदरणीय Samar kabeer साहेब | आदाब | हौसला आफजाई के लिए दिली शुक्रिया | अवाम शब्द पढ़ने सुनने में स्त्रीलिंग ही लगता है अच्छा हुआ सर ,आपने बता दिया मैंने तो हमेशा स्त्रीलिंग में ही प्रयोग किया है | उरूज़ का अर्थ बुलंदी से लिया है |सादर |
जनाब गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत' जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।
'अवाम चुपचाप देखती है अजब नज़ारे सियासतों के'
आपकी जानकारी के लिए बता रहा हूँ "अवाम" शब्द पुल्लिंग है ।
'गिरा है मेयार मीर का जो उरूज़ से नित फिसल रहा है'
इस मिसरे में 'उरूज़' का क्या अर्थ है?
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