मौज ख़ुद आपको साहिल पे लगाने से रही
और क़ुदरत भी कोई जादू दिखाने से रही
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हौसला आपका दे साथ करम हो रब का
फिर किसी सिम्त बला कोई सताने से रही
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हो सके जितना हक़ीक़त ये समझ लो सारे
मौत मर्ज़ी से कभी आपकी आने से रही
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इम्तिहाँ रोज़ ही देने हैं यहाँ जीने को
रोने धोने से तरस ज़िंदगी खाने से रही
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हो अगर कोई तसव्वुर में तभी ख़्वाब सजे
कोई मूरत तो कभी ख़्वाब सजाने से रही
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होशियारी भी ज़रूरी है सदा जीवन में
गर पड़ी कोई भी खू जल्द वो जाने से रही
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हर ख़ुशी क़ीमती है ज़श्न मना लो वरना
लौट कर कोई ख़ुशी फिर से तो आने से रही
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जीत सकते हैं हर इक दिल को मुहब्बत से सदा
यार नफ़रत तो किसी घर को बसाने से रही
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क्या करेगा वो तरक्की जहाँ में शख़्स 'तुरंत'
सिर्फ जिसको है शिकायत ही ज़माने से रही
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गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' बीकानेरी
(मौलिक एवं अप्रकाशित )
Comment
आदरणीय बृजेश कुमार 'ब्रज' साहेब
खाकसार का कलाम पसन्द करने और हौसला आफजाई का बेहद शुक्रिया
बढ़िया ग़ज़ल कही है आदरणीय..बधाई
आदरणीय Samar kabeer साहेब |
तह-ए-दिल से शुक्रिया क़बूल करें . ज़र्रा -नवाज़ी है आपकी |
जनाब गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत' जी आदाब,अच्छी ग़ज़ल हुई है,बधाई स्वीकार करें ।
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