For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

थरथरा उठती हैं आस्थाएँ

ठीक है अभी तक अनवरत

तुम मन ही मन मानो निरंतर

देवी के दिव्य-स्वरूप सदृश

अनुदिन मेरी आराधना करते रहे

और अभी भी भोर से निशा तक

देखते हो परिकल्पित रंगों में मुझको

फूलों की खिलखिलाती हँसी में भी

गुनगुनाती लहरों के गीत में भी

और कभी आँख मलते टिमटिमाते

तारों की चमक में देखते हो मुझको

 

पर सुनो, कभी दो कदम

अपनी कल्पना के बाहर झाँककर देखो

एक और नामहीन सँसार बसता है यहाँ

धूलभरा कँटीला

मेरा व्यक्तित्वहीन सँसार

कई वर्षों से जिसको मैंने

अनवस्थित, गुहराती सोचती-सी खड़ी

उस अंतिम शाम के बाद

एक कष्टमयी अप्रत्यक्ष काली कोठरी में

सोने की गिन्नी-सा बंद कर रखा है

 

बाहर की भयानक आँधियों की साज़िश से दूर

कि तुम, मेरे प्यार

तुम मुझे निरंतर अवसन्न क्यूँ देखो

बंद कोठरी में जागती मेरी पीड़ा से तुम

सस्पंदन क्यूँ करो

तुम ...

तुम जो अभी भी कल्पना में मुझको

फूलों-सी हँसती देख सकते हो

लहरों-सी इठलाती देख सकते हो

या, देवी सदृश पूज सकते हो मुझको

 

और हाँ, यह भी सुनो ...

उन चमकते टिमटिमाते आसमानी तारों से दूर कहीं

मेरी छाती में कितने “और”

बुझे हुए तारे भी हैं

गिरफ़तार जिनमें संचित राख है केवल

कहीं एक भी चिंगारी नहीं 

राख है, राख है केवल

और मैं अपनी कुंठित रातों में

उनसे कष्टमय संबन्ध जोड़ती

उन बुझे तारों को गिनती हूँ

 

भटक जाती हूँ, अकुलाती हूँ

तुम्हें सोचते-सोचते

उन तारों की गिनती भूल जाती हूँ

और फिर ...

फिर से गिन देती हूँ उनको

इसी प्रक्रिया में मेरी

एक रात और, फड़कती सरक जाती है

ऐसे में उफ़नते अँधेरे से मिलजुल

मेरा गुमनाम  अधूरा और सतही

सँसार जगा रहता है

 

धुंधराले कुहरे में लिपटी 

हर रात के बाद यहाँ भी

सहज आ जाती है भोर

पर इस भोर में वह

भीगी ओस

अब “ओस” नहीं होती

जानते हो क्या होती है ?

... ??

वह जो अनदेखे अनजाने

मेरे सरद गालों पर ढुलक जाती है

 

सदियों का पुराना हमारा मेल

तुम्हारा लम्बा हाथ, तुम्हारा साथ

रह-रहकर यही ख्याल आता है ...

पूछती है रूह

कहाँ हो तुम

कहाँ हो तुम

 

    ---------

  --- विजय निकोर

 

(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 572

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by vijay nikore on July 5, 2019 at 11:04pm

 सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार, मेरे भाई गिरिराज जी।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 5, 2019 at 12:14pm

आदरणीय  बड़े भाई विजय जी , खूबसूरत कविता के लिए आपको हार्दिक बधाई !

Comment by vijay nikore on June 8, 2019 at 8:28am

मेरे प्रिय भाई समर जी, आप आए तो लगता है कि ईद अभी यहीं है। सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार।

Comment by Samar kabeer on June 7, 2019 at 3:00pm

जनाब भाई विजय निकोर जी आदाब,बहुत समय बाद आपकी रचना पढ़ने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है, बहुत सुंदर और भावपूर्ण कविता लिखी है आपने,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"शुक्रिया आदरणीय।"
Monday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, पोस्ट पर आने एवं अपने विचारों से मार्ग दर्शन के लिए हार्दिक आभार।"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। पति-पत्नी संबंधों में यकायक तनाव आने और कोर्ट-कचहरी तक जाकर‌ वापस सकारात्मक…"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब। सोशल मीडियाई मित्रता के चलन के एक पहलू को उजागर करती सांकेतिक तंजदार रचना हेतु हार्दिक बधाई…"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार।‌ रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर रचना के संदेश पर समीक्षात्मक टिप्पणी और…"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब।‌ रचना पटल पर समय देकर रचना के मर्म पर समीक्षात्मक टिप्पणी और प्रोत्साहन हेतु हार्दिक…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, आपकी लघु कथा हम भारतीयों की विदेश में रहने वालों के प्रति जो…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय मनन कुमार जी, आपने इतनी संक्षेप में बात को प्रसतुत कर सारी कहानी बता दी। इसे कहते हे बात…"
Sunday
AMAN SINHA and रौशन जसवाल विक्षिप्‍त are now friends
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय मिथलेश वामनकर जी, प्रेत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय Dayaram Methani जी, लघुकथा का बहुत बढ़िया प्रयास हुआ है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"क्या बात है! ये लघुकथा तो सीधी सादी लगती है, लेकिन अंदर का 'चटाक' इतना जोरदार है कि कान…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service