निर्जन समुद्र तट
रहस्यमय सागर सपाट अपार
उछल-उछलकर मानो कोई भेद खोलती
बार-बार टूट-टूट पड़ती लहरें ...
प्यार के कितने किनारे तोड़
तुम भी तो ऐसे ही स्नेह-सागर में
मुझमें छलक-छलक जाना चाहती थी
कोमल सपने से जगकर आता
हाय, प्यार का वह अजीब अनुभव !
डूबते सूरज की आख़री लकीर
विद्रोही-सी, निर्दोष समय को बहकाती
लिए अपनी उदास कहानी
स्वयँ डूब जा रही है ...
आँसू भरी हँसी लिए ओठों पर
जैसे तुम मुझको हँसाती-बहकाती
अन्तस्थ में थामे कोई मूक संवेदन
हर विदाई में सिर मेरी गोदी में रख
घबराकर खुद रो-रो देती थी
अब स्वप्नातीत महाशून्य
थल से सागर से सागर तक
गहराता अकेलापन
अकल्पित सन्नाटा
अन्धकार-अम्बर में अब
अँधेरा रौशनी से ज़्यादा पुराना
ज़्यादा पहचाना लगता है
अनिश्चित साँसों के पीले सूर्यास्त में
भटका करती स्मृतियों के दरवाज़े खोल-खोल
मेरे हाथों में उष्मा भरते तुम्हारे स्नेहिल हाथ
अनजाने, मैं संकुचित और भयभीत
बहुत भारी हो रहा है अब
उमढ़ते प्यार का वह
हृदयभेदी "अजीब" अनुभव
-------
-- विजय निकोर
(मौलिक व अप्रकाशित)
Comment
सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीय भाई समर कबीर जी। आपके स्वास्थ्य लाभ के लिए प्रार्थना है।
सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीय सुशील जी।
जनाब भाई विजय निकोर जी आदाब,बहुत उम्द:,गम्भीर,भावपूर्ण रचना हुई है,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
वाह आदरणीय निकोर जी अंतर्मन के भावों को आप जिस तरह शब्दों में बाँध प्रवाह देते हैं ,उसकी तुलना किसी और से नहीं की जा सकती। इस भावपूर्ण प्रस्तुति के लिए दिल से बधाई सर।
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online